बेसबब मुस्कुरा रहा है कोई
देखो ग़म को चिढ़ा रहा है कोई
अपनी मर्ज़ी से आ रहा है ना
अपनी मर्ज़ी से जा रहा है कोई
हम कहाँ खुद से रक्स करते हैं
उँगलियों पर नचा रहा है कोई
मैं तो मिट्टी हूँ और कुछ भी नहीं
मेरी कीमत लगा रहा है कोई
चुभ न जाएं उसी के पैरों में
शूल पथ पर बिछा रहा है कोई
अपने दिल की सलेट से अज्ञात
नाम मेरा मिटा रहा है कोई
— अजय अज्ञात