ग़ज़ल
हमको अकेला छोड़ वो साजन के घर चली
बिटिया को हो नसीब, दुआ है वहां ख़ुशी
विस्वास पर है दुनिया टिकी ये सभी कहें
इक़ दूजे पर मगर नहीं करता कोई यकीं
दिल में जगह बना के नहीं यार के रखी
कहता रहा सदा ही हमें यार मतलबी
यादों में खत लिखे थे कभी आप की सनम
जल कर हुए हैं ख़ाक यहाँ आज वो सभी
सोचा न था कभी ये खुदा दिन दिखाए’गा
अब काट हम रहें हैं बिन यार ज़िन्दगी
करता नहीं है कोई भी आदर बड़ों का अब
संसार में ये कैसी हवा आज चल पड़ी
लिख्खी है किस हंसी के तसव्वुर में ये ग़ज़ल
आई कहाँ से शरों में तेरे ये नग़मगी
‘संजय’ तू आदमी तो बड़ा ही नफ़ीस है
तेरी हर एक बात में देखी है उम्दगी
— संजय कुमार गिरि