वारौ सौ न्यारौ सौ !
वारौ सौ न्यारौ सौ, ब्रज कौ कन्हैया;
प्यारौ दुलरायौ सौ, लागत गलबहियाँ !
भेद भाव कछु ना मन, चित्त प्रमित भास्वर घन;
व्यस्त चकित रह थिरकित, किलकत कुहकत फुरकत !
जानत हर मन की गति, हर हरकत वह समझत;
अपनी वह करवाबत, देवत जो हम चाहत !
घर ना ज़्यादा रहवत, बाहर देखन चहवत;
चलिवे की जब ठानत, रुकनौ ना फिरि चाहत !
चाखत हर फल जावत, चीख़ कबहुँ वे मारत;
‘मधु’ कूँ देखत अँखियाँ, करि जावत कछु बतियाँ !