गीत/नवगीत

पीछे ते कूक देत आवत गिरधारी

पीछे ते कूक देत, आवत गिरधारी;
परिकम्मा गोवर्धन, देवत त्रिपुरारी !
कीर्तन करि चेतन स्वर, तरत जात गातन गति;
मुरली की तान सुनत, केका कानन कूजत !
किसलय उर लय पावत, लता पता फुर होवत;
ताल तमालन खोजत, कान्हा जब कछु बोलत !
छिप २ राधा देखत, गोपिन्ह मन की कहवत;
कृष्ण सखा मनसुख कूँ, जब तब छेड़त रहवत !
छोड़न ना जातु रहत, करबट ना लेन देत;
मन हारी ‘मधु’ वारी, प्रभु चरणन बौछारी !