कविता

मैं प्यार हूँ

मैं प्यार हूँ
जी हाँ मैं प्यार हूँ,
दिल मेरा बसेरा है..
पर आज
मैं भटक रहा हूँ
यहाँ से वहां , वहां से यहाँ,
खा रहा हूँ दर दर की ठोकर,
किसी ‘दिल’ की तलाश में ,
जहाँ मैं पनाह ले सकूं.
पर आज
जैसे हर इंसान
अपने दिल पर
‘हाउस फुल’ का बोर्ड लगा कर .
अपने में मस्त है-
दिल में नफरत है,
झूठ के अफ़साने है,
किसी को धोखा फरेब देने को
हज़ारों तरकीबें हज़ारो बहाने हैं,
कुछ झूठे अरमान है,
कुछ खुदगर्ज़ी के सामान हैं,
और मैं दे रहा हूँ हूँ दस्तक,
दिल के किसी कोने में
थोड़ा सा सुकून पाने के लिए
पर
दर दर भटक रहा हूँ…
यहाँ से वहां , वहां से यहाँ,
काश यह दुनिया —
अब भी मुझे अपना ले ,
अपना बना ले–
वर्ना यह दुनिया ,
इस नफरत की आग में
जल कर तबाह हो जाएगी,
और मेरी आत्मा भी एक दिन
भटक भटक कर
तड़प तड़प कर
मर जाएगी,

–जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845