कविता

कविता : बुढ़ापा

बीत गए दिन जवानी के
मेहनत और क़ुरबानी के
जब तक था स्वार्थ
तब तक रहे साथ
अब बेटा नही कहता पापा
जब से आया है बुढ़ापा

दिल में एक अरमान था
बेटे पर अभिमान था
सोचा था बुढ़ापे में बनेगा मेरा सहारा
पर मेरी किस्मत ने ये नहीं स्वीकारा
बेटे ने साथ छोड़ा सभी ने मुझसे मुँह मोड़ा
क्या है मेरी गलती कोई मुझे बताए
बूढ़े माँ-बाप को बेटा क्यों सताए

तू भी एक दिन बूढ़ा होगा
ये क्यों भूल जाता है
जो जैसा करता है
वह वैसा ही फल पाता है
अजीब हो गयी है दुनिया
अब प्यार से कोई नहीं खिलाता
अब बेटा नही कहता पापा
जब से आया है बुढ़ापा

पीयूष राज

पीयूष राज

पियुष राज उम्र-17 साल दुमका,झारखण्ड मो-9771692835