// जीवन पथ में…//
ये जरूरतें हैं, हमारे बीच में
एक दूसरे को मिलती
बंधु – बाँधव – मित्र – शत्रु,
छल,कपट सभी जीवन में
वो चलाती हैं
ये जरूरते हैं जो अपना जाल बिछाते
भोग लालसता की ओर खींचते
वर्ण – जाति – धर्म – कर्म – मर्म में
हर जगह ज़हर भरके
मनुष्य को मनुष्यता से दूर किया है।
इच्छाओं पर अंकुश लगाते
साधारण जीवन में
जो संतुष्ट होते हैं
प्रफुल्लित हो जाते अपने आप में
परिश्रम में लगन से रहते भरपूर
वो आदर्श रच पाते हैं
जो जागरूक रहते हैं
अपने ध्यान से, एकाग्रचित्त में
निज धर्मधारी बन जाते
वो ही सच जानते हैं
जो सत्य के साथ चलते
मानवता का रूप बनते
समानता के स्तर पर
सबमें अपना रूप देखते हैं
इस दुनिया में
वो ही धर्म का अधिकारी हो जाते हैं।