फिर गए हवाई चप्पलों के दिन
ठीक उसी तरह ‘कि पहले अंडा आया कि मुर्गी’ की तरह यह सवाल भी मौजू है कि पहले जूते आए या चप्पल। जूते का ही संशोधित रूप चप्पल है या चप्पल की ही अगली पीढ़ी का नुमाइंदा है जूता। मेरा ख्याल है कि ऊंचे-नीचे, पथरीले-रेतीले रास्तों पर चलने से होने वाली दिक्कत से बचने के लिए आदमी ने सबसे पहले जिस चीज की कल्पना की होगी, वह खड़ाऊं ही रही होगी। अब तक सबसे ज्यादा प्रसिद्ध खड़ाऊं रामचंद्र जी की ही रही है, जिसे उनके छोटे भाई भरत ने सिंहासन पर रखकर अमर कर दिया। खड़ाऊं का ही संशोधित रूप चप्पल है, इसे मानने में शायद ही किसी को आपत्ति हो। खड़ाऊं पहनकर चलने-भागने में होने वाली दिक्कतों ने चप्पल का ईजाद किया। हां, आजादी के कई दशक पहले से लेकर आजादी के बाद के दो-ढाई दशक तक पूरे देश में गटापारची (प्लास्टिक) चप्पलों का राज रहा है, लेकिन जैसे ही रबड़ की चप्पलें बाजार में आईं, गटापारची चप्पलों का पराभव हो गया। ठीक वैसे ही जैसे दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार और मनोज कुमार का स्टारडम राजेश खन्ना के आते ही क्षीण हो गया था।
हवाई चप्पल भी बहुत दिनों तक लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकी। किसिम-किसिम की सैंडिलों और जूते-जूतियों ने हवाई चप्पलों को उनकी औकात बता दी। जिस गटापारची या हवाई चप्पलों को पहनकर लोग शादी-विवाह, नाते-रिश्तेदारी में आते-जाते थे, उसको पहनकर घर से बाहर निकलना, हास्यास्पद हो गया। गटापारची चप्पल तो जहां बिला गए, वहीं हवाई चप्पलों का दायरा घर तक ही सीमित कर दिया गया।
कहते हैं न कि बारह साल बाद घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। हवाई चप्पलों के भी दिन फिर गए हैं। कल तक बड़े-बड़े शापिंग मॉल्स, बड़े-बड़े शूज स्टोर्स से लेकर गांव-कस्बों में खुली ‘मटुकनाथ जूता स्टोर’ टाइप दुकानों में इतराने वाले ब्रांडेड जूते-चप्पल अपनी किस्मत को रो रहे हैं। उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा है। मानो हवाई चप्पलों के सामने उनकी कोई औकात ही न बची हो। हवाई चप्पल खरीदने को भीड़ उमड़ी पड़ रही है। भले ही अभी हवाई यात्रा का जुगाड़ न हो पाया हो, लेकिन निरहू प्रसाद से लेकर कल्लो भटियारिन तक हवाई चप्पल खरीद कर रख लेना चाहते हैं। क्या पता किस दिन हवाई यात्रा का कोई जुगाड़ भिड़ ही जाए। ऐन मौके पर हवाई चप्पल न मिले, तब? नासपीटा घुरहुआ उस दिन दुकान बंद रखे, तो क्या होगा? हवाई यात्रा का सपना तो ‘टांय-टांय फिस्स’ हो जाएगा। आज हवाई चप्पल पहनकर हवाई यात्रा करने की इजाजत मिली है, कल हवाई यात्रा के लिए हवाई चप्पल अनिवार्य कर दिया गया, तो? सरकार कुछ भी कर सकती है। सरकार सरकार है। उसका कोई हाथ पकड़ सकता है भला। गरीब नवाज तो कल यह भी कह सकते हैं कि चड्ढी-बनियान पहनकर भी लोग हवाई यात्रा कर सकते हैं, बस चड्ढी-बनियान फटी न हो। दुकानदार भी मौके की नजाकत देखकर हवाई चप्पल की कालाबाजारी कर रहे हैं। साठ-सत्तर रुपल्ली में बिकने वाली हवाई चप्पल आकाश कुसुम होती जा रही है। अभी कल ही एक खबर छपी थी कि जूते की दुकान का ताला तोड़कर चोर पचास जोड़ी हवाई चप्पल चुरा ले गए। ब्रांडेड और लक्जरियस जूते, सैंडिल्स चोर से हाथ जोड़कर विनती करते रहे, लेकिन चोर ने उनकी एक नहीं सुनी।