हास्य व्यंग्य

गधे तो वाकई गधे होते हैं

गधे तो वाकई गधे होते हैं। एकदम सीधे-सादे, मेहनती और संतोषी। गधे के यही तीन गुण उसको महान बना देते हैं। सीधा इतना कि मालिक बात-बेबात दो लट्ठ लगा भी दे, तो बिलबिलाकर ‘ढेंचू-ढेंच’ कर लेगा और फिर निरपेक्ष भाव से काम में लग जाएगा या चरने लगेगा। मेहनत के बारे में तो कहना ही क्या। इंसान को उसकी औकात से थोड़ा ज्यादा काम बता दो, तो तत्काल कह बैठता है, ‘गधा समझ लिया है क्या? कि लाद दिया एक गधे भर का काम।’ कहने का भाव यह है कि गधे जितना काम कोई कर ही नहीं सकता। संतोष के मामले में इस चराचर जगत में गधे का मुकाबला कोई जीव कर ही नहीं सकता है, न एक कोशिकीय, न बहुकोशिकीय। सिधाई, मेहनत और संतोष मिलकर किसी गधे को गधा बना देते हैं, उसे गधत्व (गधापन) प्रदान करते हैं। जिस तरह संतत्व, बुद्धत्व, वीरत्व एक भाव है, एक विशेषण है, ठीक उसी तरह गधत्व भी एक खास किस्म की प्रवृत्ति का बोध कराता है। यह अमूर्त होते हुए भी प्राचीनकाल से ही इंसानों में भी मूर्तमान होता रहा है।
यह गधत्व ही है जिसकी बदौलत आप किसी भी व्यक्ति को देखते ही कह देते हैं, ‘अरे! यह तो पूरा गधा है।’ अब आप चीनियों की बुद्धिमत्ता देखिए। वे पाकिस्तान से गधे आयात करने जा रहे हैं। मानो पूरी दुनिया में पाकिस्तानी गधे और उनका गधत्व ही उच्चकोटि का है। अब चीनियों को कौन समझाए कि पाकिस्तान से गधों का आयात करके ही वे उच्चकोटि के गधत्व को प्रदर्शित कर रहे हैं। मेरे एक पाकिस्तानी मित्र हैं ‘कमरटुट्ट’। एक बार किसी बात पर खफा होकर उनकी बेगम ने उनकी कमर पर पाद प्रहार किया था, जिससे कमर में लचक आ गई। बस तभी से उनका नाम कमरटुट्ट पड़ गया। लोग उनका असली नाम ही भूल गए। टेलीपैथी (मानसिक तरंगों) से हम रोज बातचीत जरूर करते हैं। एक दिन ‘चीन द्वारा पाकिस्तानी गधों के आयात’पर बातचीत होने लगी, तो उन्होंने बड़े गर्व से बताया, ‘जानते हैं, एशिया महाद्वीप में पाकिस्तानी गधे हमेशा से ही उच्चकोटि के रहे हैं।
पाकिस्तान में चाहे लोकतांत्रिक सरकार रही हो या सेना की तानाशाही वाली, सबने गधों को संरक्षण प्रदान किया है। पूरी दुनिया में सबसे शुद्ध गधत्व पाकिस्तान का ही रहा है। हमारे यहां एक से बढ़कर एक गधे हुए हैं जिनके गधत्व की पूरी दुनिया में धूम रही है। कई बार तो अमेरिका, रूस, चीन, जापान से लेकर होनोलूलू द्वीप समूह तक के नागरिक हमारे देश के गधों का गधत्व देखकर आश्चर्यचकित रह गए हैं। यही वजह है कि चीन मुंहमांगी कीमत पर हमारे गधों का आयात कर रहा है। वैसे गुणवत्ता में पाकिस्तानी खच्चर भी किसी से कम नहीं हैं, लेकिन जितनी ख्याति पाकिस्तानी गधों की रही है, वैसी ख्याति खच्चरों को नहीं मिल पाई। या कहिए कि पाकिस्तानी खच्चरों की ब्रांडिंग ठीक से नहीं की गई। अगर ब्रांडिंग हुई होती, तो पाकिस्तानी खच्चरों का निर्यात करके पाक अमीर हो गया होता।’ अब कमरटुट्ट की बात पर मैं बोलूं भी तो क्या बोलूं? आप लोग ही बताएं।

*अशोक मिश्र

अशोक मिश्र समाचार संपादक हिंदी दैनिक न्यूज फॉक्स 65 ए, नारायण जी भवन, सिविल लाइंस, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश