वजन की मारी, इमान बेचारी
आपने पिछले दिनों मिस्र की एक महिला इमान अहमद अब्दुलाती के बारे में अनेक समाचार पढ़े होंगे, जो अपना वजन कम करने के लिए मुम्बई लायी गयी है। किसी शारीरिक कमी के कारण उसका वजन 500 किलोग्राम तक पहुँच गया था और इसके कारण वह पलंग पर पड़े रहने को मजबूर हो गयी थी।
भारत में उसकी चिकित्सा की कहानी का सारांश यह है कि उसके लिए अस्पताल में एक विशेष कक्ष बनाया गया, जहाँ उसे दिन-रात निगरानी में रखा गया। प्रारम्भ में उसे विशेष प्रकार के भोजन और दवाओं पर रखा गया था जिससे उसका वजन एक माह में लगभग 100 किग्रा कम हो गया अर्थात् 400 किग्रा पर आ गया। वह काफी प्रसन्न भी मालूम पड़ रही थी तथा उसकी अन्य अनेक शिकायतों में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ था।
यदि इमान की यही चिकित्सा चलती रहती तो सम्भव था कि अगले दो-तीन महीनों में उसका वजन और घट जाता और वह पूरी तरह सामान्य हो जाती। लेकिन उस अस्पताल के डॉक्टर उसकी प्रगति से संतुष्ट नहीं थे और अधिक तेज़ी से वजन कम करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इमान के कई ऑपरेशन किये। पता चला है कि इन ऑपरेशनों में उसके शरीर की चर्बी को किसी तरह खींच-खींचकर या चूस-चूसकर निकाला गया। इसके परिणामस्वरूप डॉक्टरों के अनुसार इमान का वजन लगभग 225 किग्रा और कम हो गया अर्थात् उसका वजन 175 किग्रा पर आ गया।
लेकिन वजन इतना कम हो जाने पर भी इमान प्रसन्न नहीं थी क्योंकि ज़बरदस्ती वजन घटाने पर उसके सामने अनेक नई समस्यायें पैदा हो गयीं, जिनमें मानसिक अवसाद और हार्मोनों की गड़बडी भी शामिल है। इमान की माँ और बहिन भी इस इलाज से संतुष्ट नहीं हैं और वे डॉक्टरों को कोसते हुए इमान को वापस ले जाने पर ज़ोर डाल रही हैं।
मेरे विचार से इमान की खराब हालत के लिए डॉक्टरों का हड़बड़ी भरा रवैया और ज़बरदस्ती वजन घटाने के ऑपरेशन ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने इस बात पर विचार नहीं किया कि इसके क्या-क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं। प्रारम्भ में केवल खान-पान में परिवर्तन करने से इमान का वजन कम हो रहा था और कोई नई समस्या भी पैदा नहीं हो रही थी। वजन घटाने का वही तरीक़ा सर्वश्रेष्ठ है।
प्राकृतिक चिकित्सा में वजन घटाने के लिए केवल तरल पदार्थों के सेवन के साथ-साथ एक दिन पूरे शरीर का भाप स्नान और अगले दिन पूरे शरीर की तेल मालिश दी जाती है। इसके बाद एक या दो दिन का आराम दिया जाता है। ऐसा करने पर किसी भी व्यक्ति का वजन सरलता से इच्छित सीमा तक कम किया जा सकता है और इससे कोई नई समस्या भी उत्पन्न नहीं होती।
लेकिन जब भारी भरकम डिग्रीधारी डॉक्टर अपना किताबी ज्ञान ज़बरदस्ती आज़माने पर उतारू हों, तो रोगी की वही हालत हो जाती है जो आज बेचारी इमान की हो गयी है।
— विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु ८, सं २०७४ वि (३ मई, २०१७)