संवेदनशील-आध्यात्मिक रविंदर भाई: जन्मदिन की बधाई
रविंदर भाई जी, आपके जन्मदिन के पावन अवसर पर हमारी ओर से आपको कोटिशः बधाइयां एवं शुभकामनाएं.
”फूलों की सुगंध से सुगंधित हो जीवन तुम्हारा,
तारों की चमक से सम्मिलित हो जीवन तुम्हारा,
उम्र आपकी हो सूरज जैसी,
याद रखे जिसे हमेशा दुनिया,
जन्मदिन में आप महफ़िल सजाएं आप ऐसी,
शुभ दिन ये आये आपके जीवन में हज़ार बार,
और हम आपको “जन्मदिन मुबारक ” कहते रहें हर बार.”
”सूरज रोशनी ले कर आया और चिड़ियों ने गाना गाया ,
फूलों ने हंस-हंसकर बोला मुबारक हो, तुम्हारा जन्मदिन है आया.”
रविंदर भाई, आपको चिड़ियों से बेहद प्यार है. आपको पक्षियों वाले ग्रीटिंग कॉर्ड्स बहुत पसंद आते हैं, हम आपको आपके जन्मदिवस पर चिड़ियों वाला ग्रीटिंग कॉर्ड ही भेज रहे हैं.
आपने लिखा- ”आदरणीय दीदी, मेरा जन्मदिन 03 मई 1949 है. मेरा विचार है, कि प्रकृति ने हमें जीवन भर बहुत दिया है, कम-से-कम अपने जन्मदिन पर पौधा लगाकर हमें प्रकृति को कुछ लौटाना चाहिए.” रविंदर
रविंदर भाई, आपने जन्मदिन मनाने के लिए बहुत अच्छी योजना बनाई है. आप यह भी बताइएगा, कि इस बार आपने कौन-सा पौधा लगाया है. फिलहाल फूलों के पौधे आपके जन्मदिन पर आपको मुस्कुराने का तोहफ़ा प्रदान कर रहे हैं-
“दीप जलते-जगमगाते रहें;
आप हम को, हम आपको याद आते रहें;
जब तक ज़िंदगी है दुआ है हमारी;
आप फूलों की तरह मुस्कुराते रहें.
जन्म दिन मुबारक हो!”
रविंदर भाई प्रतिक्रियाएं और रचनाएं लिखने के मंझे हुए प्रोफेसर हैं. हम उनके बारे में जो कुछ जान पाए हैं, प्रतिक्रियाओं और रचनाओं के माध्यम से ही जान पाए हैं. विज्ञान, व्यावहारिकता और सकारात्मक तर्कशीलता रविंदर भाई का महत्त्वपूर्ण गुण है-
वे लिखते हैं- ”गुरुत्वाकर्षण नीचे की ओर चलता है. पानी की टंकी में पानी ऊपर चढ़ाने के लिए मोटर( फ़ोर्स) लगानी पड़ती है, नीचे पानी की सप्लाई के लिए मोटर नहीं चलानी पड़ती. इसी प्रकार बच्चे के लिए प्यार उमड़ता है (नीचे बहाव के लिए फ़ोर्स नहीं लगाना पड़ता). बच्चों को मां-बाप के लिए (ऊपर चढ़ने की तरफ) फोर्स लगाना पड़ता है, जो कि कम ही लोग लगाते हैं.”
रविंदर भाई की भाषा संयत होने के साथ-साथ अर्थपूर्ण भी होती है. रिश्तों की मजबूती पर अपने विचार प्रकट करते हुए वे लिखते हैं-
”छोटी-छोटी बातों का ध्यान न रखने से बड़े-से-बड़े रिश्ते भी कमजोर हो जाते हैं. आप गलती एक बार कर सकते हैं, (या गलती से सीख सकते हैं) दूसरी बार गलती नहीं आपका चुनाव होता है. गलती से पहले सोचने वाला समझदार होता है, गलती करके सोचने वाला नासमझदार होता है, गलती के बाद भी गलती करने वाले को क्या कहें? यह आप समझ सकते हैं”.
रिश्तों की अहमियत और अपनत्व की खूबसूरती उन्हीं के शब्दों में-
”मेरी सबसे बड़ी बहन मां को तू कहकर बुलाती थी, लिहाजा हम दोनों भाई और छोटी बहन भी तू ही कहके बुलाने लगे. इसमें एक अपनत्व महसूस होता है. पिता को हम आप कह के बुलाते थे, इसमें सम्मान तो है पर एक प्रकार का छिपा हुआ डर भी है. एक बार प्यार का झरना बहने लगे तो इसे रोकना मुश्किल हो जाता है.”
उनकी रचनाओं में प्रेमचंद जैसी भावपूर्ण शैली की झलक मिलती है. एक बानगी देखिए-
आदरणीय लीला बहनजी, ”जैसे किसान अपने लहलहाते खेत देखकर, साहूकार को देनदार देखकर, मां को अपने बच्चे देखकर खुशी होती है लगता है, आपको अपनी रचना देखकर भी वैसी ही खुशी होती होगी. हमें भी आपकी नित नई रचना का ऐसा ही इंतज़ार रहता है. एक विचार “पैसा हमें ऊपर ले जा सकता है, पर हम पैसे को ऊपर नहीं ले जा सकते”.
वे अपने आध्यात्मिकता लिए हुए सकारात्मक विचारों पर टिके रहते हैं-
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं, “फ़रिश्ते से बेहतर है इंसान बनना,
पर इसमें पड़ती है मेहनत ज्यादा,
मानव बनना इतना आसान नहीं.
सीख रहा हू मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पर किताबों से ज्यादा लिखा होता है”.
कामेंट में नेक और विशाल दिल की एक बानगी देखिए-
आदरणीय लीला बहन जी कोयले के साथ रहकर बन गया कोयला तो सुना था, आपने हीरों में से हीरा निकाल लिया. बहुत सार्थक प्रेरणादायक ब्लॉग.
“किसी के हाथ में हीरा,
किसी के कान में हीरा,
हमें हीरों से क्या मतलब,
हमारे ढोलकिया जी हैं हीरा.
बंदगी है खुदा की खुदा का है नूर,
हीरों में यह माणिक है नूरों में कोहिनूर.”
रविंदर भाई जिस बात को जानते-मानते हैं, उसे करते भी हैं. उनका जानना-मानना है-
”मुलाकातें बहुत जरूरी हैं अगर रिश्ते निभाने हैं,
लगातार भूल जाने से तो पौधे भी सूख जाते हैं.”
रिश्ते निभाने के लिए वे समय-समय पर सुंदर-सुंदर अनमोल वचन, Good morning card, Good evening card आदि भेजकर संवाद और मुलाकातों का सिलसिला जारी रखते हैं.
रविंदर भाई की प्रतिक्रियाएं हों या रचनाएं, मानवीय मूल्यों, नैतिकता और अनुशासन पर उनका विशेष बल होता है.
”आदरणीय लीला बहन जी, बच्चों के लिये अच्छी अच्छी सीख देती आपकी बाल काव्य सुमन के सुमन दादी-नानी-मां रूप की प्यारी देन है. सुन्दर रचना, बच्चों से एक बात कहना चाहता था, आपके ब्लॉग के माध्यम से कहने का साहस कर रहा हूं. जब भी स्कूल से घर में आयें, चीजें बिखेरें नहीं, तरतीब से लगाएँ, जहाँ से लें वहीं वापस रखने की आदत बचपन से ही बनाएं.”
उनकी इस प्रतिक्रिया पर हमने एक बाल गीत लिखा-
”प्यारे बच्चो, नेक बनो
एक बनो, एक बनो,
प्यारे बच्चो, नेक बनो.
जब भी शाला से घर आओ,
सब चीज़ें करीने से लगाओ.
जूते ठीक जगह सब रखना,
कपड़े भी तह करके रखना.
साबुन से तुम धोना हाथ,
सीखो रहना सबके साथ.”
आध्यात्मिक क्षेत्र में उनके आत्मविश्वास की झलक का एक रूप-
”मुझ पर उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी. अब उसी की मर्जी चलेगी. कई बार देखता हूँ वो चिड़ियों के बीच जाकर चूं-चूं करता है कभी हवा के झोंकों के साथ फूलों में झूमता है, कभी हाथ फैलाकर मेरी नातिन के अंदर से मुझे उठाने को कहता है, कभी मेरी नातिन के अंदर से अपनी बांहें मेरे गले में डाल देता है. अब मैं और धोखा नहीं खाने वाला, अब मैं उसे पहचान गया हूं.”
हर बात को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का आनंद आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाला ही जान सकता है-
”डिप्रेशन का सीधा-सीधा सम्बंध मन से है. मेरे विचार से मन को भौतिक साधनों की अपेक्षा आध्यात्मिक साधनों से विचारों से परे ले जाने पर डिप्रेशन से छुटकारा शत प्रतिशत संभव है. मन में उठते विचारों से डिप्रेशन होता है, विचारों से मुक्त होने पर डिप्रेशन का कारण समाप्त हो जाता है. आध्यात्मिक साधन है ध्यान, जो कि किसी अच्छे आध्यात्मिक संस्थान से सीखा जा सकता है”.
रिश्तों की संवेदनशीलता और आशावादिता से लबरेज़ आपकी ताज़ा प्रतिक्रिया भी स्मरणीय है-
”रिश्तों की संवेदनशीलता से निराश न हो,
मुझ जैसे भी तो मिल जाते हैं”.
रविंदर सूदन की काव्यमय उत्कृष्ट प्रतिक्रियाएं-
”राकेट से चांद पर पहुंचना ।
हवाई जहाज से हवा में उड़ना ॥
यदि सोचते कठिन है काम ।
तो बैठे बैठे करते विश्राम ॥
हिम्मत से है दुनिया सारी ।
बच्चो अब है आपकी बारी ॥”
”जब समुन्दर में ज्वार आता है
लगता है लहरो का चांद से नाता है ।
जब लहरें थक कर सो जाती हैं
चांद तभी उतर कर आता है ।”
”हे प्रभु लीजिये विनती हमारी सुन,
जिनपे नजरें हों तुम्हारी
हमें भी लीजिये उनमें चुन,
कान हमेशा जब भी सुनें
सुनें सिर्फ आपकी धुन,
आपके ही बोल सुनूं मैं
भंवरा जब भी करे गुन-गुन,
लगता नहीं जी दुनिया में
सूना है सब तेरे बिन.”
”बाल्टी भर कर करें स्नान
फव्वारे को करें प्रणाम
बूंद-बूंद हर चीज बचाएं
जितनी जरूरत उतना खाएं
बोलो बात समझ में आई?
सभी की इसमें है भलाई.”
अब उनकी रचनाओं पर दृष्टि डालते हैं. अपना ब्लॉग पर अपनी पहली ही रचना ”गलती का एहसास” से उन्होंने धूम मचा दी-
”अपना ब्लॉग पर बहुत खूबसूरत और जागरुकता बढ़ाने वाले ब्लॉग के साथ आपका हार्दिक स्वागत है. आपने सिर्फ़ विवेक के विवेक को ही नहीं, सभी बच्चों-युवाओं के विवेक को जगा दिया है. इतनी खूबसूरत सीख एक नेक और खूबसूरत दिल वाला ही दे सकता है. बहुत सरल भाषा में सहज शैली में आपने खूबसूरत संदेश दे दिया है.”
”दुःखी रहने के उपाय” ब्लॉग को भी आप नहीं भूल पाए होंगे. एक मंझे हुए लेखक की तरह हंसते-खिलखिलाते व्यंग्यमय शैली में बहुत सुंदर लेख लिखा था रविंदर भाई ने.
”इंसान कहीं का” आलेख में रविंदर भाई ने इंसान की इंसानियत को ललकारा है.
उसके बाद शुरु हुई उनकी आध्यात्मिक रचना ”उसकी कहानी”, जो 6 भागों में चली और उसकी हर कड़ी एक अलग रंग लिए हुए है, जिसका रसास्वादन आप कर ही चुके हैं.
”भोजन का महत्व समझें” ब्लॉग में भोजन से संबंधित सभी आवश्यक व सकारात्मक जानकारी एक जगह मिल गई. उन्होंने बताया, कि सात्विक भोजन से मन में शुभ विचार पैदा होते हैं, मन स्थिर रहता है. अंत में मज़ेदार और संदेशमय चुटकुलों ने भोजन के बाद स्वीट डिश का काम किया. इस ब्लॉग ने भी पाठकों का भरपूर प्यार पाया.
उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने के लिए आप उनका ब्लॉग देख सकते हैं-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/
जीवन के 68 बसंत पार करके अपने लेखन के पूर्ण यौवन पर पहुंचे हुए रविंदर भाई को हमारी ओर से कोटिशः बधाइयां एवं शुभकामनाएं.