गर्मी के दोहे
सूरज आतिश बन गया,तपे नगर औ” गांव !
जीव सभी अकुला उठे,ढूंढ रह सब छांव !!
सूरज का आक्रोश है,बिलख रहे तालाब !
कुंओं,नदी ने भी ‘शरद’,खो दी अपनी आब !!
कर्फ्यु सड़कों पर लगा,आतंकित हर एक !
सूरज के तो आजकल,नहीं इरादे नेक !!
कूलर,पंखे हँस रहे,ए.सी.का है मान !
ठंडे ने इस पल “शरद’,पाई नूतन शान !!
कोल्डड्रिंक भाने लगे,कुल्फी पर है गौर !
शीतल जल की मांग है,ठंडे का है दौर !!
किरणें ना किरणें लगें,बरस रही है आग !
बचना यदि चाहो ‘शरद’, तो लो बचकर भाग !!
कम्बल अब बेकार हैं,बिरथा ऊनी वस्त्र !
किरणें हमले कर रहीं,बनकर तीखे शस्त्र !!
पानी जैसा बह रहा,तन से अविरल स्वेद !
इस मौसम में हो रहा,हर इक जन को खेद !!
— प्रो.शरद नारायण खरे