तरही ग़ज़ल
मेरे अक्स में फिर अक्स तेरा न लगे।
जुस्तजु न रहे तेरी कोई रिशता न लगे।
तुझे भूलने की नाकाम कौशिश मैं करूं ;
मेरी रुह से तू कहीं मगर जुदा न लगे।
कैफ़ियत कैसी है जिस्त की क्या कहूं;
मेरा था वो पर अब क्यों मेरा न लगे।
ताउम्र न भूलेंगी ज॒फ़ाएं तेरी ओ रहबर;
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे।
देख हालत मेरी रो उठी है कायनात भी;
यूं किसी को भी प्यार की बद्दुआ न लगे।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !