ग़ज़ल : जरा सी शाम ढलने दो
लिखेंगे गीत वफाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
लिखेंगे गीत दुआओं के, जरा सी शाम ढलने दो
मौसम के रंग कैसे थे, हवा का नूर कैसा था
लिखेंगे गीत हवाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
थीं रिमझिम बारिशें कैसी, लिपटी बादलों के संग
लिखेंगे गीत घटाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
फूलों की जवानी पे, फ़िदा भंवरे थे किस जानिब
लिखेंगे गीत फिजाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
तितलियाँ थीं व भंवरे थे, बहकी सी थी पुरवाई
लिखेंगे गीत छटाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
थोडा सा जाम छलक जाए, दर्दे दिल बहक जाए
लिखेगे गीत सदाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
थोडा सा सरूर चढ़ने दो, महफिल में नूर चढ़ने दो
लिखेंगे गीत जफ़ाओं के, जरा सी शाम ढलने दो
— अशोक दर्द