कागज पर जब रखा हमने जलते हुए ज़ज़्बात को । लोगों ने उन्हें पढ़ लिया यारों उठकर आधी रात को ।। दर्द के किस्से अपने थे पर जग ने अपने समझ लिए। कैसे जग को अब समझाएं गहरे राज की बात को ।। सावन की रातों में जब जब तन्हाई – घन गरजे हैं । […]
Author: अशोक दर्द
लघुकथा – दाल-फुलका
आदत के अनुसार शाम के वक्त मैं रोज पार्क में घूमने निकल जाता हूं । वहां कई लोग मिल जाते हैं । कुछ खेलते हुए बच्चे तो कुछ पढ़ते हुए बच्चे । कई अपने हमउम्र मित्र भी इसी बहाने मिल जाते हैं । कल शाम को जब मैं पार्क में घूम रहा था तो मेरे […]
ग़ज़ल
भिड़ गया चुनौतियों से जो भी वीरवर । जंगे मैदान से वही शख्स आया जीतकर ।। बिखरा नहीं जो शख्स कभी दुख से टूट कर करती है नाज़ दुनिया बशर ऐसे विनीत पर। जली है शमां जो भी रात भर बज़्म में । कुर्बां हुआ पतंगा है उसी की प्रीत पर।। परों को अपने हिम्मतों […]
ग़ज़ल
भंवरे कलियां प्यार ग़ज़ल में लिखा कर । सावन खिजां बहार ग़ज़ल में लिखा कर ।। नारों में उलझा कर सत्ता की खातिर । क्या करती है सरकार ग़ज़ल में लिखा कर।। कि झूठे वादों का तुम्हें चकमा दे देकर । किसने ठगा हर बार ग़ज़ल में लिखा कर ।। अब तक कितना कर्ज अदा […]
कविता – तुम क्या जानो
सुखद कल की आस में , सुबह से शाम तक ,गृहस्थी का ठेला खींचते-खींचते , मैं कितना थक जाता हूँ …, तुम क्या जानो …| पेट की सलामती के लिए , बॉस की झिड़कियाँ आशीर्वचन समझकर कितनी ही बार मुस्कुरा कर सहन कर लेता हूँ , तुम क्या जानो …| रसोई के खाली कनस्तर मुंह […]
कविता
विकास की सीढ़ी पर…. कच्चा मांस खाने पशुओं की खाल ओढ़ने और कबीलों में रहने से शुरू हुआ जीवन आज कहां आ पहुंचा आग के अविष्कार से लेकर आज रोबोट तक का सफर बेशक रोमांचित करता है आदमी को । आज धरती पर विकास की सीढ़ी लिए खड़ा हुआ आदमी इतना स्वार्थी और महत्वाकांक्षी हो […]
लघुकथा – समय के पदचिन्ह
अनुभव ने लाला मदन लाल को कहा- ” मुझे बढ़िया से जूते दिखाओ ‘। लाला का नौकर उसे जूते दिखाता गया और वह रेंज बढ़ाता गया। कस्बे की इस दुकान पर सबसे महंगे जूते दस हजार तक के ही थे । उसने कहा -‘ इससे महंगे और भी है जूते?” लाला ने इंकार कर दिया। […]
ग़ज़ल
बंजर में फिर फूल उगाने की सोचें । आओ फिर से नीड़ बनाने की सोचें ।। पिंजरों में हैं बंद जो सदियों से पंछी । करके उन्हें आजाद उड़ाने की सोचें ।। मलिन बस्तियों में जो बचपन रोता है । उन्हें किताबों से बहलाने की सोचें ।। दुनिया में हो हर सू खेती फूलों की […]
कविता – इस उतरती सांझ में.
चलो इस उतरती सांझ में पहाड़ की गोद में बैठ कर सिंदूरी धूप को शिखर चूमते हुए देखें । चलो इस उतरती सांझ में दरिया के किनारे बैठ कर उछलती गिरती लहरों को तट चूमते हुए देखें । चलो इस उतरती सांझ में किसी पेड़ के नीचे बैठकर नीड़ की ओर लौटते पंछियों का नर्तन […]
मुक्तक
छुपा के रखना सारे दर्द दर्द ए दिल जमाने से । कहां रुकते हैं लम्हें मुश्किलों के रोक पाने से ।। हंसकर सीख ले चलना तू खारों पर अंगारों पर। कठिन लम्हें भी हो जाते हैं आसां मुस्कुराने से ।। — अशोक दर्द