कविता – सत्ता के गलियारों में
असली कम और नकली ज्यादा है इनके किरदारों में |न मानो तो देख लो तुम भी सत्ता के बाजारों में
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Read Moreहाशिए पर खड़ा आदमीधूप में झुलस जाता है मूक होकरक्योंकि वह सूरज के खिलाफ विद्रोह करना नहीं जानतावह हवा के
Read Moreआदत के अनुसार शाम के वक्त मैं रोज पार्क में घूमने निकल जाता हूं । वहां कई लोग मिल जाते
Read Moreयूं तो मैं पहाड़ से था। हिमाचल के चंबा से । परंतु रोजगार के सिलसिले में रहता पठानकोट था। क्योंकि
Read Moreचंडीगढ़ के एक ओल्ड एज होम में मास्टर प्रभात को अपनी जिंदगी की शाम के यह अंधेरे गुमनाम दिन काटते
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