ग़ज़ल : नये दौर की कहानी
जहरीली हवा घुटती जिंदगानी दोस्तो
यही है नये दौर की कहानी दोस्तो
पर्वतों पे देखो कितने बाँध बन गये
जवां नदी की गुम हुई रवानी दोस्तो
विज्ञानं की तरक्कियों ने चिड़ियाँ मार दीं
अब भोर चहकती नहीं सुहानी दोस्तो
कुदरत के कहर बढ़ गये हैं आज उतने ही
जितनी बढ़ी लोगों की मनमानी दोस्तो
पेड़ थे परिंदे थे झरते हुए झरने
किताबों में रह जाएगी कहानी दोस्तो
हर रिश्ता खरीदा यहाँ सिक्कों की खनक ने
कहीं मिलते नहीं रिश्ते अब रूहानी दोस्तो
अँधेरा ही अँधेरा है झोंपड में देखिये
रौशन हैं महल मस्त राजा – रानी दोस्तो
सरे राह कांटे की तरह तुम कुचले जाओगे
कहने की सच अगर तुमने ठानी दोस्तो
भर रहे सिकंदर तिजोरियां अपनी
दर्द लाख कहे दुनिया फानी दोस्तो
— अशोक दर्द