आज शाखाएँ बहकी
गीत बना कर मैं नया, कहता मन की बात।
काम-काम में दिन गया, आयी सुख की रात।।
आयी सुख की रात, मिले आराम बदन को।
भटकाना मत कभी, रात में अपने मन को।।
कह “मयंक” कविराय, उठो सुख-चैन मना कर।
कुछ अभिनव सन्देश, सुनाओ गीत बना कर।।
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चहकी कोयल बाग में, देख आम पर बौर।
कुदरत के उपहार को, धरती है सिरमौर।।
धरती है सिरमौर, खुशी के गीत सुनाती।
अपने मीठे सुर से, खुशियों को उपजाती।।
कह “मयंक” कविराय, आज शाखाएँ बहकी।
होकर भावविभोर, तभी तो कोयल चहकी।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’