गीतिका
सैलाब आते रहे हैं पानी बहाने के लिए
नदियां उफ़न जाती हैं आफत भगाने के लिए
दोनों की जदोजहद में तबाही के फेन देखिए
हवायें भी चलती है किनारे सुखाने के लिए
जाने कितने घर और बहेंगे अंधी सुनामी में
सुना यह नमूना है परिंदों को डराने के लिए
भरोसे ही बनाते हैं हर साल हजारों छप्पर
वहीँ उम्मीद के बाँध बनते हैं टूट जाने के लिए
सिलसिला हैवान होता है जब इंसानियत पे
बयानबाजी नाकाफी है जीव जिलाने के लिए
अब तो कुछ कठोर ख्वाहिस भी जगानी होगी
सुकमा सैलाब आया है खून खौलाने के लिए
बाढ़ आती है गौतम कसक मलाल देके जाती
अपनों के बीच बैठक है क्रंदन थिराने के लिए
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी