गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

सैलाब आते रहे हैं पानी बहाने के लिए
नदियां उफ़न जाती हैं आफत भगाने के लिए

दोनों की जदोजहद में तबाही के फेन देखिए
हवायें भी चलती है किनारे सुखाने के लिए

जाने कितने घर और बहेंगे अंधी सुनामी में
सुना यह नमूना है परिंदों को डराने के लिए

भरोसे ही बनाते हैं हर साल हजारों छप्पर
वहीँ उम्मीद के बाँध बनते हैं टूट जाने के लिए

सिलसिला हैवान होता है जब इंसानियत पे
बयानबाजी नाकाफी है जीव जिलाने के लिए

अब तो कुछ कठोर ख्वाहिस भी जगानी होगी
सुकमा सैलाब आया है खून खौलाने के लिए

बाढ़ आती है गौतम कसक मलाल देके जाती
अपनों के बीच बैठक है क्रंदन थिराने के लिए

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ