कहानी

“नेवता की बानगी”

आज लपलपाती गर्मी में, तपती दोपहरी में, धूँआ सुलगाती सड़क के किनारें पसीना पोछते हुए झिनकू भैया दिख गए। ताज्जुब हुआ, जो आदमी ठण्ड की दोपहरी में छाता लगाकर चलता हो, वह कड़कती लू में घर से बाहर कैसे निकल गया। बाइक मोड़कर उनके पास वापस हुआ, हेल्मेट हटाया और अपना पसीना दिखाते हुए कहा…..अरे भैया, इस वक्त आप और यहाँ, कोई खास बात, आइये पीछे बैठिये घर छोड़ देता हूँ। नहीं भाई, घर से ही तो बड़ी मसक्कत से हाँफत- डाफते यहाँ तक पहुँचा हूँ। पानी में आग लगाती यह गर्मी और नौ मन का नेवता, लगता है मार ही डालेगा। एक एक दिन दश दश नीला, पीला, गुलाबी, लाल और सतरंगिया निमंत्रण पत्र धमाक- धमाक गिर रहा है। कोई खास है, कोई आम है, कोई रिश्ते में है, पर बहुत दूर का है, तो कोई नया नया साढू बनकर धमक गया है। बहन, बेटी, बुआ और नाना- मामा का अपना अलग ही उपकार है। समझ में नहीं आता, मेली बुआ की शादी में जलूल आना, यह किसका अनुपम विचार है। कहाँ जाऊं, किसका निभाऊं और किसको गिनाऊँ कि यह कहरौवा राम राम, केवल और केवल सड़क-चौराहे का फुरसतिया व्यवहार है। जिसके फायदे और नुकशान की समझ आज तक मुझे ही नहीं आ पाई, तो औरों की क्या कहें। देखों न बिना किसी कारण हर अभिवावक अपने बच्चों से यही कहता है, सड़क का शोहदा बने घूम रहे हो, चौराहे की हवा अच्छे- अच्छों को हवा- हवाई का सफ़र करवा देती है, अपने घर रहों और कुछ बन जाओ। मानों खुद को कोश रहे हों कि मुझे देखों, मैंने बड़ी मेहनत से समाज बनाया है जिसका परिणाम है कार्ड पर कार्ड उड़ रहें हैं। घर भरा हुआ था (अपने पुत्र) तुम्हारी शादी में, ताँता लगा हुआ था गाड़ियों का, तिलक के दिन। इसे कहते हैं इज्जत की कमाई, दिल खोल के खर्च किया, भले न एक बिगहा खेत बिक गया पर मेहमानों को दिखा दिया कि हम घूम घूम कर खाना जानते हैं तो बुला- बुलाकर खिलाना भी जानते हैं। एक मित्र के लडके की तिलक है वहीँ जा रहा हूँ बनारस, एक पंथ दुइ काज, गंगा जी में डुबकी मार लूंगा इसी बहाने। रोको, रोको……उ देखों टेम्पों आ गया…….पर भैया, आज तो अपने पट्टीदारी में ही तिलक है, घरे बियाह, सढ़ूवाने के न्योता…..हा हा हा हा हा……अरे हाँ, नच्छत्तर के लड़िका के तिलक!!!!! ल्यों….. ई त भुला ही गए…..उनकी हरदी आई रही……. कोई बात नहीं, उनकी बारात करेंगे…….., पूरा गाँव तो है ही, उनकी चीली चालू मिठाई और पूड़ी खाने के लिए……बच्चों को कह देता हूँ चले जाएंगे, (फोन लगाकर हिदायत देते हुए)….. उनकी भी शोभा बढ़ जाएगी, हुड़दंगों की टोली से, बहुत मीन-मेख निकालते हैं खानेपीने और दूसरों की व्यवस्था को लेकर……अच्छा भैया राम राम……आप की यात्रा मंगलमय हो……मुझे भी यही काम करना है, दो जगह दिन में निपटा दिया……शाम को फिर निकलूंगा भाँवर घूमने….. रात नच्छत्तर भैया के वहाँ ही गुलज़ार होगी…..भौजी की दरियादिली को आप जैसे लोग ही भुला सकते है, मैं कैसे भूल सकता हूँ, अपने ही गॉंव का बेटा हैं, हा हा हा हा हा…..जय हो, नेवता लेव- देव की……

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ