उसकी यादों में…..
वो है इस बात से बेखबर
जागती हूँ रातों को
उसे याद कर
सोने नहीं देती मुझे
उसके एहसासों की छुअन
खलबली मचाए रखती है
उसके होने की सिहरन
गुज़र जाती है रात मेरे बिस्तर से
धीरे-धीरे
पर आती नहीं नींद आँखों में
रूठ जाती है अँधेरे की
तन्हाईयाँ भी मुझसे
जब देखती उनकी यादों को
बुदबुदाते
मेरे तकिये के सिरहाने
चाँद होता है पुरे आगोश में
चाहता है करना दीदार मेरा
उतर आता है
आकाश की सीढ़ियों से
अपने दामन में समेटे
सितारों को
पर लौट जाता ठिठक कर
जब देखता है वो
मेरी आँखों में
तस्वीर मेरे यार का
नर्म रजाईयां भी चुभती है
अब इस बदन को
एक उसका सहलाना ही
इस तन को भाता है।