गज़ल
किसी हसीन कैद को निजात कहते आए हैं,
तेरी खुशी के लिए दिन को रात कहते आए हैं,
तुम सज़ा के खौफ से हमको डरा ना पाओगे,
हम दीवाने मौत को हयात कहते आए हैं,
राहों की मुश्किलों से जुनूं और तेजतर हुआ,
हर इक ज़ख्म को तेरी सौगात कहते आए हैं,
रह जाती हैं अधूरी वो हर बार पूरी हो के भी,
अजीब शै है जिसको ख्वाहिशात कहते आए हैं,
तुझपे मयस्सर है तू समझे या ना समझे मगर,
हर गज़ल में हम तेरी ही बात कहते आए हैं,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।