“सरसी छंद”
विधान- 27 मात्रा, 16,11 पर यति, अंत में गाल
विशेष – सरसी = चौपाई + दोहा का सम चरण
समान्त – आल <> अपदान्त
नई सुबह है नया सबेरा, नई किरण है भाल
नए नए कलरव किलकारी, हुए कपोलन लाल।।-1
नये फसल की नई रवानी, अपने बदन अनूप
अपने तरुवर झूम झकोरे, अपने बिहरत ताल।।-2
अपनी बोली अपनी भाषा, अपने साज श्रृंगार
अपने तर्क ह्रदय भा जाए, चमके चर्चित गाल।।-3
अपना सरबस देशज अपना, अपना देश महान
अपनापन सत्यापित करता, अपने आप निहाल।।-4
गौतम यह बीरों की धरती, ऋषि मुनियों का देश
एकहि एक देख हरियाली, हो जा माला माल।।-5
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी