कहानी- आई हेट यू…..संजीत
रात के ग्यारह बज रहा होगा , सिरहाने तकिये के पास रखा मोबाइल बज उठा, नींद मे अधखुली आँखों से मैंने देखा साक्षी का कॉल था
हेलो….. साक्षी ,
..ओये मेरे हीरो गाँव क्या गये तुम तो जैसे घोड़े बेचकर सो रहे हो…..
‘अरे नही यार अभी अभी तो नींद आई थी , और तुम इतनी रात कॉल की हो बात क्या है ?’
” अच्छा जी मेरी निंदे उड़ाकर पुछ रहे हो की बात क्या है कैसे प्रेमी हो जी तुम निर्मोही हो गये हो , छोड़ो सब ,सुनो कल आ रहे हो न , मेरी मम्मी भी आ रही है , ईस बार तुमको मिलाना चाहती हूँ ,और परसों मेरा जन्मदिन भी तो है ,आओगे न हीरो…’
‘ठीक है बाबा..आ जायेंगे बस अब खुश’
‘पक्का न हीरो’
हाँ हाँ पक्का !’
बहुत देर तक सोचता रहा , साक्षी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से थी और दिल्ली हौज़ ख़ास मे रहकर निफ्ट मे फैशन डिजाईनिंग डिप्लोमा कोर्स कर रही थी और मै एम बी ए कर रहा था , हम दोनों मे बहुत प्यार था !
सुबह ही बलिया से मै सदभावना एक्सप्रेस पकड़ लिया दिल्ली के लिये. जनरल बोगी से जाना मजबूरी थी मेरी ,जैसे तैसे सीट मिल गई. फ़िर ट्रेन हिचकोले लेकर चल पड़ी दिल्ली को. सामने की सीट पे 50 साल की इक औरत बैठी थी ,और मेरे बगल मे दो आदमी के बाद इक औरत तक़रीबन 25 से 30 साल की होगी सूरत से बीमार नज़र आ रही थी साथ मे लगभग तेरह साल का बच्चा भी था !
सामने वाली औरत न जाने क्यों मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी ,मुझे अजीब लग रहा था ,कही ऐसा तो नही था की मेरी अंदर की खुशी वाली फीलिंग.. देखने मे तो साक्षी की माँ के जैसी लग रही थी, जो भी हो मै खिड़की के तरफ़ देखने लगा ,
‘ कहाँ जाना है बेटा ?’ मैंने देखा वो मुझसे पुछ रही थी ,
‘दिल्ली तक’
‘वो ,मुझे भी दिल्ली जाना है’ वो थोड़ा हल्की सी मुस्कुराई ‘क्या नाम है बेटा आपका ,
” जी संजीत.’
मैंने देखा उनको…ये क्या ये तो साक्षी के जैसी मुस्कुरा रही है , फ़िर इक दो बात हुई फ़िर रात हो गयी. रात के तक़रीबन दो बजे बगल वाली औरत जो बीमार थी उसके पेट मे दर्द होने लगा, देखते ही देखते भयानक दर्द होने लगा ,पूरा बोगी परेशान हो गया, लड़का अपने माँ को देखकर रोने लगा, रोते रोते उसने अपना बैग खोला और दवा निकाल कर अपने माँ को खिलाया , पर कोई राहत नही मिल रहा था ,
मुझसे रहा नही गया मै लड़के से पूछा ‘बाबू, माँ को कैसा दवा दिये हो अभी?’
लड़का बोला ‘जब भी दर्द होता है माँ यही दवा लेती है और ठीक हो जाती है पर ईस बार क्यों नही ठीक हो रही है…’
दर्द से औरत को बेहोशी की हालत हो रही थी ,लड़का रो रो कर थक गया था ,
अब गाजियाबाद आने वाला था , ओह , ट्रेन की बोगी मे बैठे लोग भी कुछ नही कर पा रहे थे उस अजनबी औरत को दिलासा तक नही दे पा रहे थे सिर्फ सामने बैठी औरत के सिवा, वो बराबर उसको पंखा झेलें जा रही थी, मैंने उस मासूम की आँखो को देखा ,आँसू अब गालो तक नही आ रहे थे आँखों मे ही दम तोड़ रहे थे ,उसने अपनी माँ को नन्ही सी बाहों मे भर लिया था , उफ़, दिल से निकला मेरे ,
मैंने तय किया की इंसानियत के नाते मदद करनी चाहिये हमे , और मै गाजियाबाद मे ही उस बच्चे और औरत को लेकर उतर गया ,
ट्रेन चली गयी और मै रेलवे स्टेशन के बाहर इक निजी अस्पताल मे ले आया, सारा दिन हास्पीटल मे बीत गया ,
चेकअप के बाद पता चला की औरत को जोन्डिश के साथ साथ पित की थैली मे स्टोन भी है , खैर दवा से दर्द राहत मिला , डाक्टर की फीस पंद्रह सौ जमा करना था ,बच्चा सुन लिया और बेग से पैसे निकाला कुल मिलाकर तीन सौ रुपया,
अब क्या करूँ , फ़िर अपने पास से फीस जमा किया , ‘बाबू आपको दिल्ली मे कहाँ जाना है ?’
‘मेरी माँ को पता है’
‘सुनिये कहाँ जाना है आपको दिल्ली मे’
‘गोविंदपुरी जाना है?’ औरत दर्द से पूरी तरह टूट चुकी थी , मैंने जैसे तैसे बताये पते पर गोविन्दपूरी पहुँचा
रात के दस बजने वाले थे , मैंने आवाज़ लगाई ,अंदर से साठ पैंसठ साल का बूढ़ा आदमी खांसते हुऐ निकला ,
उस आदमी को देखते ही उस औरत और लड़के ने पैर छूएँ ,
मेरा परिचय हुआ और मै मेडिकल का पूरा रिपोर्ट बताकर जल्दी से जल्दी इलाज करवाने की बात कही , बीमार औरत ने मेरे लिये चाय बनाई ,…….तभी मोबाइल पे मेसेज आया ,..आई हेट यूं संजीत ,पहली बार अपने जिद और विश्वास से हारी हूँ , पहली बार तुमने मुझे आँसू दिये वो भी मेरे जन्मदिन पर , मै मेसेज पढ़ के चुप ही रहा ,
‘अब मुझे जाना होगा’ , तभी वो अंदर से डाक्टर की फीस लाकर मुझे कांपती हाथों से देने लगे ,
‘नही चाचा जी , आप इनका इलाज करवाईयेगा ठीक से’
मै इक नज़र से बच्चे को देखा और जैसे ही दो क़दम बढ़ा बच्चे ने पकड़ लिया, मैंने देखा उसकी आँख से आँसू फ़िर छलक गये ,
मैंने पचास का इक नोट उसके पाकेट मे रखा और कहा मन लगाकर पढ़ना और अपनी माँ का ख़याल रखना, फ़िर भारी मन से चल दिया , एक बार पलट के उस दरवाजे की तरफ़ देखा , वो औरत एकटक मुझे देख रही थी आँखों मे आँसू लिये जैसे हजार दुआएं दें रही हो ,और फ़िर मै चल दिया.
रात के ग्यारह बज चुके थे मैंने साक्षी के दरवाजे की कालबेल बजाई , जैसे ही दरवाजा खुला ,
मैंने देखा , ‘जी आप ,वही ट्रेन….’
‘हाँ मै ही साक्षी की माँ हूँ अंदर आओ बेटा ‘
‘मै सब जान गई हूँ संजीत ,तुम सचमुच इंसानियत के देवता हो , मेरी साक्षी यूं ही नही तुमसे प्यार करती , मै साक्षी से एक घंटा पहले तुम्हारी फोटो देखकर सब समझ गई और ट्रेन की सारी बातें बताई उसे’
‘मेरे मुँह से निकला साक्षी किधर है?’
‘अपने रूम मे…..जाओ बेटा!’
मैंने रूम मे जाके देखा साक्षी मेज पे अपने केहुनी को मोड़कर कलाई के बीच चेहरा रख के बैठी थी सामने मेरा फ्रेम मे लगा फोटो रखी थी जिसे एकटक निहारे जा रही थी, साक्षी की आँखे कुछ देर पहले रोकर चुप हो गई थी, जीरो वाट की नीली बल्ब की हल्की रोशनी मे व्हाईट सुट मे परी की जैसी लग रही थी.
‘साक्षी…..’ मैंने हौले से पुकारा
वह अपनी गर्दन थोड़ा घुमाकर देखी और पल भर मे आके गले लग गई ,
‘सॉरी साक्षी…. मै…’
उसने मेरे होंठों पर अपनी अँगुली रख दी , आँखों से आँसु छलकर गालों को भिगोने लगे ,
मैंने कहा, ‘आई हेट…’ साक्षी ने पूरे पंजे से मुँह मेरा ढक दिया , और ‘आई लव यू संजीत ‘
और फ़िर दोनों माँ के पास जाकर अपना सर माँ के गोद मे रख दिये ,
‘तुम दोनों का प्यार यूं ही बना रहे बच्चो , ये माँ हमेशा तुम दोनों के साथ है..’ माँ की आँखे भी भर आई थी..
— आकाश कुशवाहा