दो लघुकथाएं
(1) आत्मग्लानि
वह दिन भर की आवारागर्दी के बाद घर लौटा, तो उसने पाया कि उसकी छोटी बहन कलप-कलपकर रो रही है ।उसने सुना कि वह कह रही है कि, “मैं कल से काॅलेज नहीं जाऊँगी ।” बहुत पूछने पर उसने बताया कि वह स्कूटी से काॅलेज जा रही थी कि बगल से बाइक से निकले लडकों में से बाइक पर पीछे बैठा उसका दुपट्टा झपट ले गया ।
सुनकर उसे बड़ी ग्लानि हुई, क्योंकि वह तो मौजमस्ती में ऐसा अनेक लड़कियों के साथ कर चुका था। पर आज उसे लगा कि मानो उसने ख़ुद की बहन का ही दुपट्टा खींचने का ही अपराध किया है ।
(2) पश्चाताप
दुर्घटना में आहत होकर, वह पिछले एक सप्ताह से विकलांग होकर बैसाखी पर चलने को मजबूर था, पर आज वह काॅलोनी छोड़कर चलते-चलते मेनरोड पर आ गया था। लेकिन सड़क पर गाडिय़ों की रेलमपेल देखकर वह सड़क पार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था ।
उसको असहाय देखकर एक नौजवान ने उसका हाथ पकड़कर उसे सड़क पार करा दी। इस पर वह अपने काॅलेज के दिनों की यादों में खो गया, जबकि वह अपने एक विकलांग साथी की खिल्ली उड़ाकर न केवल उसे ‘लंगड़ा ‘कहकर अपमानित करता था, बल्कि उसकी बैसाखी छिपाकर उसे परेशान भी करता रहता था ।पर आज उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था ।
— प्रो.शरद नारायण खरे