जो है, सो है
पूरे घर में गन्दगी का अम्बार था, घर की तिजोरी पर हर कोई हाथ साफ़ कर रहा था, जेवर-सोना-चांदी सब लूट चुका था, सारे तालें टूटे पड़े थे, हर कोई बाप का माल समझ कर मलाई मार रहा था और दूध में पानी मिला मिला कर तपेले में पूरा दूध भरे होने का भ्रम पैदा कर रहा था, हालांकि कमाई खूब थी, फिर भी अपनी हरकतों के चलते उधार ले लेकर घर चलाया जा रहा था, देखने वालों का मुंह बन्द करने के लिए उनके मुंह में मलाई ठूंस दी जाती थी, दरवाजें टूटे पड़े थे, चोर उचक्के, कुत्ते, बिल्ली, मक्खी-मच्छर सीना ताने बाप का घर समझकर घुस रहे थे, लब्बोलुआब यह है कि घर की बहुओं और उनसे जुड़े लोगों की नीयत कुछ और ही कहानी कह रही थी,
घर में नई बहू आई, वह बड़ी विनम्र थी, सेवाभावी भी थी, सुसंस्कारित थी, ईमानदार थी, घर को मन्दिर समझती थी, घर को सुधारने-मजबूत करने पर सबसे ज्यादा ध्यान देने लगी, जितना है, उससे भी कम में घर चलाने लगी, उधारी चुकाना भी शुरू कर दिया, बचत शुरू हो गई, बाजार से बेहद ऊँचें भावों में चीजें खरीदने की बजाय घर में ही चीजें बनाने लगी. और भी बहुत कुछ …….
बड़ी बहुओं को लगने लगा कि हमारी पोल खुलने लगी है और लम्बे समय तक खुलती ही चली जाने वाली है, और कल को सब इसी के मुरीद ना हो जाएं और हमें कोई पूछेगा नहीं, हमारी तो मौजमस्ती ख़त्म हो जायेगी, बस उन्होंने जोर जोर से सारे ज़माने को सुनाते हुए नई बहू को निपटाना शुरू किया और इसमें अपने किये कुकर्मों पर पर्दा डालने की कोशिशें साफ़ साफ़ नजर आ रही थी, परन्तु बिना संकोच के घर की दशकों पुरानी दुर्दशा के लिए नई बहू को कोसना शुरू कर दिया, उन पड़ोसियों को भी साथ मिला लिया, जिन्हें वे चन्दी डालती रहती थी, शादी-ब्याव-गीत-संगीत के बारे में गाँव में न्यौता (तेड़ा) देने वाले नेग (भेंट) भोगी औरतों-आदमियों ने भी बहू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, खूब जोरशोर से बहू की खूब लानत मलामत की जाने लगी.
बावजूद सामूहिक-उच्चस्तरीय-समग्र-समवेत-एकजुट कोशिशों-षडयंत्रों के, आशा के विपरीत सम्बन्धित लोग समझदार निकले. नई बहू के पक्ष में खड़े होते चले गए. खिसियानी बिल्लियों की तरह सभी जोर शोर से खम्बा नोंचने लगे. खम्बे सुरक्षित हैं, नाखून घायल हैं, बिल्लियाँ खतरनाक मूड में हैं, भगवान् नई बहू की रक्षा करें.
— डॉ मनोहर लाल भंडारी