“माँ ममता की मूरत है”
माँ को नमन करते हुए!
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उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!
दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोकर,
वो सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
बेटों को सदा खिलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
ऋण नही कभी चुका सकता,
कोई भी जननी माता का,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)