ऐतराज़
“एक बात बताइए योगिता जी, जब हमारी शादी तय होकर सगाई की रस्म भी पूरी हो चुकी है, तो फिर आपके माँ-पिता ने हमें बाहर घूमने जाने की अनुमति क्यों नहीं दी? अगर उन्हें अपने होने वाले दामाद पर विश्वास नहीं तो विवाह के बाद अपनी बेटी के भविष्य के प्रति वे आश्वस्त कैसे हो सकते हैं?”
-बात यह है नवीन जी, कि उन्होंने मेरे कहने पर ही हमें कहीं जाने की अनुमति नहीं दी. चूँकि इससे पहले मेरे दो रिश्ते टूट चुके हैं. दोनों बार ही सगाई की रस्म के बाद जब हमें एक साथ घूमने जाने की अनुमति मिली तो लड़कों ने घंटों बाहर रहने के बाद मुझे विश्वास में लेकर ऐसा प्रस्ताव रखा जिसके लिए मेरे संस्कार विवाह पूर्व अनुमति नहीं देते. अतः मैंने माँ को सब कुछ स्पष्ट बताते हुए निर्णय लिया कि मैं ऐसे लड़के से विवाह हरगिज़ नहीं करूँगी जो मॉडर्न-कल्चर की आड़ में मेरी भावनाओं को आहत करे. हम दोनों ही आपस में बातचीत करके इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे चुके हैं, पुनः आप इस कमरे में जितनी देर चाहें बातें कर सकते हैं. अगर रिश्ता टूटना ही है तो घर के बाहर जाकर क्यों टूटे, यहीं क्यों नहीं?
“ओह! सुनकर बहुत दुःख हुआ योगिता जी, लेकिन लड़के ही नहीं, आजकल लड़कियाँ भी मॉडर्न-कल्चर के रोग से अछूती नहीं हैं और माँ-पिता की छूट का नाजायज फायदा उठाती हैं. मैंने भी दो रिश्ते इसी वजह से तोड़े कि सगाई के बाद घूमते हुए कार में ही लड़कियों ने आगे रहकर अपने हाव-भाव से मुझे बहकाने का प्रयास किया. मुझे दिली प्रसन्नता है कि मेरा रिश्ता आप जैसी संस्कारवान लड़की से तय हुआ है.
क्या अब भी आपको मेरे साथ घूमने चलने पर ऐतराज़ है?”
-कल्पना रामानी