तालाब : पाँच लघु कवितायेँ
(१)
बहुत ज़रूरी है
मेरे गाँव के तालाब का
ज़िंदा रहना
क्योंकि यह तालाब
मात्र गड्ढा नहीं
यह हृदय है इस गाँव का
जो सहेजता है
और संचारित करता है
जीवनदायी तरल
अनवरत।
(२)
एक बुज़ुर्ग तालाब
है बहुत उदास
जिसने देखी हैं
कई पीढ़ियाँ
अफ़सोस
अब उतरते नहीं
बच्चे इसकी सीढ़ियाँ
सूखा मन
धीरे धीरे सिकुड़ता तन
किंकर्तव्यविमूढ़ सा
दर्द सह रहा है
इसके हिस्से का पानी
बेतरतीब बह रहा है।
(३)
तुमसे पूछेंगी पीढ़ियाँ
क्यों नहीं बचाये तालाब
हम बूँद बूँद को तरसे
बोलो….
इतने दिनों से
बादल क्यों नहीं बरसे
तुम्हारे कुकर्मों का फल
हम भोग रहे हैं
तुमने पाट दिए तालाब
हम अपनी कब्रें खोद रहे हैं।
(४)
तालाब ढूँढने आये हो
मत ढूँढो
वे मर चुके हैं
अगर हिम्मत है
तो खोद डालो
ये सोने के महल
इन्हीं के नीचे दफ़्न है
तुम्हारे प्रिय तालाब।
(५)
ख़त्म हो चुकी
तालाब की उम्मीदें
टूट चुका सब्र का बाँध
तालाब का अस्तित्व
मिटाने को
लोग चल रहे हैं सारे दाँव
उखड़ रहे हैं
तालाब के पाँव
— प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’