कविता

एक नन्हा सा दीपक

सूर्यास्त का समय
और संध्या काल
जैसे रात को दे रहा निमंत्रण
सूर्य क्षितिज में समां रहा,और
तमस का हो रहा धरती पर नियंत्रण,
यह सब देख डूबते सूर्य का दिल
ग्लानि से भर गया —
यह मैं क्या कर रहा हूँ
जिस धरा को दिन भर मैंने किया प्रकाशमान,
जिसके बल पर था यह सारा जग उदीयमान ,
उसे रात का अंधकार देकर क्यों जा रहा हूँ दूर .
पर प्रकृति के नियम आगे – सूर्य भी मजबूर ,

रात का अंधकार बढने लगा–
सूर्य का मन भरने लगा–
तभी सूर्य ने देखा –
दूर किसी गरीब की कुटिया में,
एक नन्हा सा दीपक जलने लगा,
सूर्या देवता को प्रणाम कर कहने लगा…
हे सूर्य देवता… मैं हूँ ना…
“आप व्यर्थ ना करें अपने मन को उदास ,
इस अंधेरी रात में
जहाँ तक मेरी सामर्थ्य है–
वहां तक मैं फैलाऊँगा प्रकाश,
मैं अकेला नहीं-हजारों दीपक हैं मेरे साथ,
हम दूर करेंगे इस धरती का अंधकार
भोर होने तक आपका करेंगें इंतजार,”
दीपक के इस हौसले से, सूर्य आश्वस्त हो गया,
और निश्चिन्त भाव से दूर क्षितिज में अस्त हो गया.

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845