कविता : प्रेम- संदेश
आकाश को निहारते मोर
सोच रहे , बादल भी इज्जत वाले हो गए
बिन बुलाए बरसते नहीं
शायद बदल को
कड़कड़ाती बिजली डराती होगी
सौतन की तरह ।
बादल का दिल पत्थर का नहीं होता
प्रेम जागृत होता है
आकर्षक सुंदर, धरती के लिए
धरती पर आने को
तरसते बादल
तभी तो सावन में
पानी का प्रेम -संदेशा भेजते रहे
रिमझिम फुहारों से ।
धरती का रोम -रोम, संदेशा पाकर
हरियाली बन खड़े हो जाते
मोर पंखों को फैलाकर
स्वागत हेतु नाचने लगते
किंतु बादल चले जाते
बेवफाई करके
छोड़ जाते हरियाली/ पानी की यादें
धरती पर
प्रेम संदेश के रूप में ।
— संजय वर्मा “दृष्टि”