प्रदूषण के गुबार
भौरे की निंद्रास्थली
होती बंद कमल में
उठाती है सूरज की पहली किरण
देती दस्तक
खुल जाती द्वार की तरह
पंखुड़ियाँ कमल की
गुंजन से करते स्वागत
फूलों का
मुग्ध समर्पित हो
फूल देते है दानी की तरह
किट -पतंगों को मकरंद
भोरें कभी
कृष्ण की राधा के लिए
बन जाते थे ,सन्देश वाहक
मूछों पर मकरंद लिए
कृष्ण की माला का
बालों में सजे
राधा के फूलों में बैठ
बतियाते गुंजन से-
कृष्ण याद कर रहे
आज वो बात कहाँ ?
फूलों से खुश्बू छीन रहे
प्रदूषण के गुबार
इसलिए संदेशवाहक भोरें
हो गए अपने कर्तव्य से विमुख
— संजय वर्मा “दृष्टि”