उदर विकार (आईबीएस)
यह एक कटु सत्य है कि तथाकथित आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अर्थात् ऐलोपैथी पेट सम्बंधी रोगों में बुरी तरह असफल रही है। जबकि प्राकृतिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणालियों का यह पहला सिद्धान्त है कि सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। हमारे पेट की कार्यकुशलता आँतों पर निर्भर करती है, जो खाये हुए भोजन को पचाने का प्राकृतिक तंत्र है। जब इस तंत्र में कोई गड़बड़ होती है, तो कब्ज, दस्त, वमन, गैस, अम्लता जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली इनमें से एक या अधिक शिकायतों का कोई कारण निश्चयात्मक रूप से नहीं बता सकती। इसलिए आँतों में विकार हो जाने का सामूहिक नाम उन्होंने इरीटेबल बाॅवेल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome) या आईबीएस (IBS) रख दिया है। इस नाम से ही स्पष्ट है कि यह बीमारी उनके लिए एक अबूझ पहेली है। इस लेख में हम इस बीमारी की चर्चा करेंगे और उसके निवारण के सरल उपाय बतायेंगे।
आईबीएस के लक्षण
आईबीएस में निम्नलिखित उदर सम्बंधी शिकायतों में से एक या अधिक शिकायतें हो सकती हैं-
1. पेट में दर्द, बेचैनी या जलन होना, विशेषतया पेट के निचले भाग में
2. अतिसार (दस्त) या कब्ज या बारी-बारी से दोनों होना
3. गैस बनना या पेट फूलना
4. सामान्य से बहुत कड़ा या बहुत ढीला मल होना
5. बहुत अधिक लटका हुआ पेट
6. मूत्र विसर्जन में कष्ट या जलन या दोनों होना
यह बीमारी लम्बे समय तक कष्ट दे सकती है, लेकिन जानलेवा नहीं होती। इसके कारण पेट में अल्सर या कैंसर नहीं बनता, उनके बनने के अन्य कारण हो सकते हैं।
आईबीएस के कारण
ऐलोपैथी की दृष्टि में उदर विकारों का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। इसलिए डाॅक्टर लोग इसका पता किसी टैस्ट से नहीं लगा सकते। ऐसा कोई टैस्ट है ही नहीं जिससे उदर विकारों का पता लग सके। इसको केवल इसके लक्षणों के आधार पर पहचाना जाता है। लेकिन फिर भी डाॅक्टर कई प्रकार के टैस्ट यह जानने के लिए कराते हैं कि इसके अलावा कोई अन्य बीमारियाँ तो नहीं है।
आईबीएस का उपचार
ऐलोपैथी में इस रोग का कोई कारण स्पष्ट न होने के कारण इसका कोई उपचार भी उनके पास नहीं है। वे केवल जीवन शैली और भोजन में परिवर्तन की सलाह देते हैं। साथ ही रोगी की संतुष्टि के लिए कुछ दवायें भी लिख देते हैं। जीवन शैली बदलने और भोजन में परिवर्तन से कई बार लाभ भी हो जाता है। लेकिन दवाओं का आगे चलकर बुरा प्रभाव अवश्य पड़ता है।
उदर विकार (आईबीएस) का प्राकृतिक उपचार
मैं लिख चुका हूँ कि प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धान्तों के अनुसार सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। जब हम ऐसी वस्तुएँ खाते हैं जिनको हमारी आँतें अच्छी तरह पचा नहीं पातीं और मलनिष्कासक अंग उससे बने मल को नहीं निकाल पाते, तो कब्ज की स्थिति पैदा हो जाती है। जब यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है, तो अन्य अनेक शिकायतों को जन्म देती है। इसलिए हम सबसे पहले उदर विकारों की मम्मी कब्ज पर ही प्रहार करते हैं। कब्ज कट जाने के बाद पेट का ठीक होना मामूली बात रह जाती है।
इसलिए यदि आप किसी भी तरह के उदर विकार से पीड़ित हैं, तो निम्न प्रकार सरलता से स्वस्थ हो सकते हैं-
1. सुबह उठते ही एक गिलास सादा या गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़ लें और एक चम्मच शहद मिलाकर पी जायें। नीबू के बीज निकाल दें।
2. शौच के बाद यदि सम्भव हो तो गुनगुने पानी का एनीमा लें। नहीं तो 5 मिनट का ठंडा कटिस्नान लेकर टहलने निकल जायें। तेज चाल से कम से कम दो किलोमीटर टहलें।
3. टहलने के बाद 5 मिनट विश्राम करके कुछ सरल व्यायाम या योगासन करें और फिर 5-5 मिनट कपालभाति तथा अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
केवल इतना करने से ही कब्ज की जड़ कट जायेगी और न केवल सरलता से शौच होने लगेगा, बल्कि पेट की अन्य शिकायतें भी गायब हो जायेंगी।
इसके साथ अपने भोजन और जीवन शैली में निम्नलिखित सुधार अवश्य कर लें-
1. कैफीन वाली वस्तुओं चाय, काॅफी, सोड़ा, और बोतलबंद पेयों से बचें।
2. रेशायुक्त आहार जैसे फल, हरी सब्जी, अंकुरित या साबुत अन्न, सूखे मेवा आदि का समावेश अपने भोजन में करें।
3. दूध और उससे बने पदार्थों का सेवन कम करें।
4. पानी अधिक पियें। सर्दी के दिनों में कम से कम 3 लीटर और गर्मी में कम से कम 4 लीटर प्रतिदिन पियें।
5. धूम्रपान और मद्यपान से दूर रहें। माँसाहार और भ्रूण (अंडा) सेवन से भी बचें।
6. पर्याप्त व्यायाम के साथ पर्याप्त विश्राम भी करें और तनावमुक्त रहें।
यदि आप इन नियमों पर चलेंगे, तो उदर विकार ही नहीं, अन्य सभी तरह की बीमारियों से बचे रहकर हमेशा स्वस्थ रहेंगे।
— विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ 6, सं 2074 वि (17 मई 2017)