कहानी

कहानी – उपयोगी वस्तुएं

सुनील शहर का पड़ा लिखा एक नौजवान लड़का था । कद काठी और व्यक्तित्व में साधारण । सुल्तानपुर के एक बैंक में क्लर्क था । उम्र यही कोई पैंतीस के आसपास होगी। विवाह हो चुका था या यूं कहा जाए विवाह हो चुके थे क्योंकि सुनील के दो विवाह हुए थे । पर दोनों ही नाकामयाब रहे।दोनों ही पत्नियां उसे रास नहीं आईं।पहली पत्नी एक साल साथ रही और फिर विच्छेद हो गया ।दूसरी पत्नी सिर्फ चार महीने साथ रही और विच्छेद हो गया ।अब सुनील अकेला उदास पड़ा रहता था । पैंतीस साल में ही पैंतालीस का लगने लगा था । विवाह विच्छेद का कारण भी सुनील ही था । वह अपनी पत्नी को सर्वगुण सम्पन्न देखना चाहता था । पर सर्वगुण संपन्न तो सिर्फ भगवान ही हो सकता है। उसकी दोनों ही पत्नियां सौम्या और मृदुला बहुत ही पड़ी लिखी और शालीन थी । रूप-रंग में भी सामान्य थी । पर सुनील उनसे संतुष्ट न था । वह हमेशा अपनी दोनों पत्नियों को अपशब्द बोलता रहता था । कभी कभी तो उन पर हाथ भी उठा देता था । पर वह दोनों शालीनता से सब कुछ सहन करती रहती थी । सुनील को शराब की भी बुरी लत लगी हुई थी ।

वह अपने मित्रों की पत्नियों को देखता तो उसे अपनी पत्नियों में खोट नजर आता था । पढ़ी-लिखी होने के बाबजूद भी वह अपनी पत्नियों को नौकरी करने नहीं देता था। उन्हें बहुत दबा कर रखता था । और एक दिन सुनील ने दोनों को धक्का देकर घर से निकाल दिया ।
पहली पत्नी सौम्या का विवाह एक बहुत ही संपन्न और सुखी परिवार में एक व्यापारी के साथ हो चुका था । पर मृदुला के साथ विवाह विच्छेद हुए केवल एक माह ही हुआ था। वह भी सहारनपुर के एक बैंक में क्लर्क की पोस्ट पर कार्य कर रही थी ।
सुनील एक बार रास्ते से जा रहा था कि कुछ कूड़ा बीनने वाले बच्चे कूड़े में से कुछ ढूंढ रहे थे । तभी एक बच्चे को कोई बहुत उपयोगी वस्तु प्राप्त हो गई और वह जोर जोर से बोलने लगा – न जाने कैसे लोग उपयोगी वस्तुओं को कूड़े में डाल देते हैं । अचानक सुनील को अपनी पहली पत्नी सौम्या अपने पति के साथ हंसती मुस्कुराती जाती हुई दिखी । वह अपनी पत्नी को देखकर आवाक् रह गया । सौम्या इतनी सुंदर लग रही थी कि एक बार तो सुनील उसको पहचान ही न सका । कूड़ा बीनते बच्चे के शब्द उसे अपने ऊपर किये कटाक्ष की तरह चुभ रहे थे । सौम्या ने सुनील की तरफ देखा तक नहीं और अपने पति के साथ हंसते बात करते हुए रास्ते से निकल गई ।
सुनील बेचैनी में रास्ते पर चला जा रहा था और कूड़ा बीनने वाले बच्चे के शब्द उसके कानों को भेद रहे थे । न जाने लोग कैसे उपयोगी वस्तुओं को कूड़े में फेंक देते हैं। वह इन शब्दों को बुदबुदाता हुआ घर पहुंचा । रात भर इन शब्दों ने उसे सोने न दिया ।
सुबह अनमने मन से बैंक जाने के लिए तैयार हुआ ।जब वह बैंक पहुँचा तो वह बहुत थका हुआ महसूस कर रहा था । वह अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गया ।आज उसका मन काम में नहीं लग रहा था । रह रह कर उसे सौम्या का हँसता खिलखिलाता चेहरा दिखाई दे रहा था और उस बच्चे के शब्द उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे । वह कुछ देर टेबल पर सिर नीचे किये हुए बैठ गया । तब ही बैंक मैनेजर आया और उसके साथ एक सुंदर सुशील महिला थी । मैनेजर ने परिचय देते हुए कहा – यह मृदुला शर्मा हैं सहारनपुर के बैंक से हैड क्लर्क के रूप में इनकी पोस्टिंग यहां की गई है । सुनील ने जैसे ही सिर ऊपर किया तो देखा सामने मृदुला खड़ी थी। वह उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था । मृदुला को तो पहले ही पता था कि सुनील इसी बैंक में कार्यरत है। इसलिए उसे कुछ नया न लगा । मृदुला को सभी कर्मचारियो से परिचित करवा कर मैनेजर अपने कैबिन में चला गया इधर मृदुला भी अपने कैबिन की कुर्सी पर बैठकर अपने काम का मुआयना करने लगी । सभी कर्मचारी अपने अपने काम में लगे हुए थे पर सुनील का मन काम में बिल्कुल न था ।
बच्चे के शब्द अब उसको और बेचैन कर रहे थे । वह आधे दिन की छुट्टी लेकर घर चला गया ।
घर जाकर भी सुनील का मन किसी काम में नहीं लग रहा था । वह सोच रहा था कि चीजों की उपयोगिता में वह कितना अक्षम था । आज वह पहली बार खुद से रूबरू हुआ था । वह अपने अंदर झांकने का प्रयत्न कर रहा था । यह एक आत्मदोष जो उसने प्रथम बार स्वीकार किया था । यकीनन यह उसकी हठ धर्मिता, मूर्खता, असहिष्णुता और परछिन्द्रान्वेषण की आदत ही थी जो उसे न अपनी उपयोगिता पर विचार करने देती थी और न अपनों की ।
वह आत्मग्लानि में डूब गया। वह पश्चाताप कर रहा था, काश मैं अपनी पत्नियों के प्रति संवेदनशील और उदार होता ।उसके हृदय की कठोरता पिघलने लगी थी । अपने निर्मम और निरंकुश व्यवहार तथा पत्नियों के असहाय से प्रलाप को याद करके उसके आसूँ छलक आए थे । वह सिर पकड़ कर जोर जोर से रो रहा था । पर रोना सुनने वाला कोई न था । वह रात भर घबराहट व बेचैनी में जागता और रोता रहा ।
प्रात: वह बैंक जाने के लिए तैयार हुआ वहां पहुंच कर फिर उसका सामना मृदुला से हुआ एक औपचारिक अभिवादन हुआ पश्चाताप के आँसुओं में उसकी सारी कड़वाहट बह चुकी थी । किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा वह मृदुला के पास खिंचा चला जा रहा था । वह मृदुला के पास गया और उसके पैरों पर गिर पड़ा अपने द्वारा किये कार्यों के लिए वह बहुत शर्मिंदा था । वह रो रो कर क्षमा मांग रहा था और पुन: उसे अपनाने की भीख मांग रहा था । मृदुला ने सुनील का यह रूप पहली बार देखा था । सुनील के पश्चाताप के आँसू देखकर मृदुला का हृदय पिघल गया ।
सुनील मृदुला का हाथ पकड़कर सभी साथियों के सामने ले आया और रो रो कर सबसे कहने लगा कि मैं इसका अभागा पति हूँ । मैंने इसकी उपयोगिता को नहीं समझा और इसे कूड़े कचरे में फेंक दिया । एक कूड़ा बीनने वाले बच्चे ने मेरी आँखें खोल दी । मैं आप सबके समक्ष अपनी पत्नी को सम्मान सहित अपनाना चाहता हूँ । मृदुला भी पुनः साथ रहने के लिए तैयार हो गई । आज सुनील और मृदुला का दो वर्ष का बेटा है और दोनों एक ही बैंक में कार्यरत होकर सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

— निशा नंदिनी गुप्ता

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]