राजनीति

प्रधान मंत्री की विवशता

एक समाचारपत्र में एक पाठक ने टिप्पणी की थी कि मोदी पाकिस्तान और चीन को तो कब का ठीक कर दिए होते, अगर मोदी को चीन पकिस्तान के लोगों की तरह लोग मिल गए होते, वहा जैसे बुद्धिजीवी मिले होते, वहा जैसे मिडिया वाले मिले होते और वहा जैसे बिरोधी मिले होते. मोदी निश्चित तौर पर चीन पाकिस्तान को ठीक करने का माद्दा रखते है लेकिन उन्हें अपने हर काम का बिरोधियो को सबूत देना पड़ेगा, उन लोगो का मत भी पाना पड़ेगा जिनके लिए उनका जातीय अहम् और धार्मिक अहम्, जातीय सुविधा और धार्मिक सुविधा राष्ट्र से ऊपर है.

वे एक ऐसे देश के प्रधान मंत्री है जहा बहुत पढ़े लिखो के श्रेणी में शुमार एक न्यायाधीश कहता है की हम दलित है इसलिए मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है, देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर मुसलमान कहता है की हम अल्पसंख्यक है इसलिए हमें निशाना बनाया जाता है, बिरोधी राजनेता कहते है की राजनैतिक विद्वेष बस हमारे यहाँ छापेमारी कराई जा रही है. यद्यपि यही लोग पहले कहते है कि सारी मशीनरी सरकार के पास है जांच क्यों नहीं कराती? कश्मीर की बात छोड़िये, उसे तो भारत बिरोध के लिए ही सृजित किया गया है जब jnu में देश बिरोधी नारे लग रहे है और मुख्य विपक्षी दल द्वारा उसे न्यायोचित ठहराया जा रहा है तो स्थिति के गंभीरता को समझना मुश्किल नहीं है. हास्यास्पद ढंग से ऐसे आपराधिक कृत्य को दलित और अल्पसंख्यक की श्रेणी में बांटा जाता है और मिडिया तथा न्यायालय इस बिशुद्ध अपराधिक कृत्य पर चटखारे ले लेकर बहस करता है.

एक दिन मेरे एक मित्र ने कहा की जेठमलानी एक अच्छा वकील और एक अच्छा लतमर्द भी है. मैंने कहा की इसकी सजा जानते हो तो वह बोला की जानता हु और अच्छी तरह जानता हु. जबरदस्ती एक नामी वकील बन जाउगा, राज्यसभा का सदस्य बना दिया जाउगा बहुत होगा कोई मंत्री बना दिया जाउगा. इससे ज्यादे सजा और क्या हो सकती है? यह बिडम्बना नहीं, भारतीय राजनीती का यथाथ है. लालू, मायावती, ममता, केजरीवाल जो सभ्य और सुचितापूर्ण समाज में ठीक से दो मिनट नहीं बोल सकते वे उच्च पदों पर विराजमान है. एक बात बात पर बाँहें चढाने वाले को प्रधानमन्त्री बनाने के लिए पीछे से धकेला जा रहा है.

आज देश के इस बौद्धिक पतन पर खुल कर बहस होना चाहिए. दलित अल्पसंख्यक के आड़ में जो देश में एक दरार पैदा कर दिया गया है उसे पाटने का समुचित प्रयास होना चाहिए क्योकि इन प्राविधानो से लगता है की यहाँ जितने भी कानून कायदे है सब मुट्ठीभर सवर्णों के लिए ही है. कैसी बिडम्बना है की अंग्रेज और मुग़ल सबसे अधिक जिसको को प्रताड़ित किये वाही अब भी प्रताड़ित किये जा रहे है. राष्ट्रवाद का इतना पतन दुनिया के किसी देश में नहीं हुआ होगा. चलिए गोडसे को छोड़ भी दे तो आजादी के बाद बोष भगत सिंह आजाद के श्रेणी का एक भी सपूत नहीं पैदा हुआ, राष्ट्रवादियो की पूरी पौध ही समाप्त हो गई. वैसे आंदोलनकारियो की संख्या आज भी हमारे देश में कम नहीं है, आन्दोलन भी कम नहीं होता लेकिन सुविधा देखकर ! पाकिस्तानी युवा हमारे यहाँ आकर तबाही मचाकर चले जाते है और हमारे यहाँ का युवा नवाज शरीफ का पुतला दहन करके अपने कर्तब्य का इति श्री कर लेता है. एक भी युवा उधम सिंह बनने की हिम्मत नहीं करता जबकि कन्हैया बनने की होड़ लगी हुई है. मोदी के सामने सिर्फ चीन और पाकिस्तान से निबटने की ही चुनौती नहीं है उन्हें स्व-उग्रवादी हो चुके मतदाताओं को सहेजे रखने की भी चुनौती है.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104