“कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में”
आसमान का छोर, तुम्हारे हाथो में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।।
लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है,
नीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है,
होती भावविभोर तुम्हारे हाथो में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।।
वसुन्धरा की प्यास बुझाती है गंगा,
पावन गंगाजल करता तन-मन चंगा,
सरगम का मृदु शोर तुम्हारे हाथों में।।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।।
उपवन में कलिकाएँ जब मुस्काती हैं,
भ्रमर और तितली को महक सुहाती है,
इस जीवन की भोर तुम्हारे हाथों में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।।
प्रणय-प्रेम के बिना अधूरी पावस है,
बिन “मयंक” के छायी घोर अमावस है,
चन्दा और चकोर तुम्हारे हाथो में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)