छाँव
पूछ रही है छाँव हमसे
धूप में ही क्यों याद करते हो
शीतलता की जरुरत जब होती
तभी तुम क्यों याद करते हो
तन्हा होती हूँ जब मैं कभी
मुंह मोड़कर चल देते हो
अपने स्वार्थ की खातिर ही
बस तुम याद मुझको करते हो
वक़्त को बदलते देखा हैं मैंने
तुम भी बदलते रहते हो
जिस छाँव में पले बड़े हो
उसीको भला बुरा कहते हो
बरगद हो या पीपल की छैयां
तुमको हम ने ही तो सींचा है
तुम बड़े हो सको इसलिए
तुम्हारी धूप से खुद को तपाया है
आज खुद को देखो ज़रा
हाल क्या अपना किया है
जिस छाँव ने सहारा दिया था
उसी छाँव से तुमने मुंह मोड़ा है |