गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इस दुनियां में इंसानों के क़िस्से बड़े निराले हैं
ऊपर से तो दिखते उजले, पर अंदर से काले हैं
जिन हाथों ने पाला-पोसा उनको ही डँस लेते हैं
धरती मां ने दूध पिलाकर, नाग कई ये पाले हैं
अपने सीने से चिपकाए  रक्खा जिनको जननी ने
उन  गद्दारों ने  मां की  छाती-छलनी  कर  डाले हैं
जिस थाली में  खाते हैं, झट छेद  उसी में करते हैं
नमकहरामी  है  फ़ितरत, ये  नहीं  सुधरने  वाले हैं
घूम  रहे  हैं  गली-गली  खूंखार  लुटेरे  अस्मत के
पत्थर की बस्ती के  इंसां भी, पत्थर-दिल वाले हैं
रोज़ धमाके, आगजनी ,सारी  ख़िल्क़त हलकान हुई
गला काटते भाई का ही,आफ़त के परकाले हैं
ऊपर वाला भी  हैराँ है, माथा  थामे  बैठा है
कैसे हैवानों को  उसके हाथों ने  गढ़ डाले हैं
रोज़ मिसाइल-प्रक्षेपण, घनघोर प्रदूषण फैल रहा
भीषण गर्मी से धरती के पर्वत गलने  वाले हैं
‘भान’ क़हर बरसायेगा, ये धरती ही  मिट जायेगी
पूछो इनसे, तब भी क्या ये ज़िन्दा  रहनेवाले हैं!
उदय भान पाण्डेय ‘भान’ 

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव