“गीतिका”
समान्त- अना, पदांत- जरुरी है, मापनी- 2122, 2122, 2222
हों कठिन राहें मगर चलना जरुरी है
दूर हो मंजिल डगर दिखना जरुरी है
बढ़ चलेंगे हर कदम अपने तरिके से
हौसला हर हाल में रखना जरुरी है।।
ठान ले गर आदमी पर्वत पिघल जाए
पर भरोषा आप पर करना जरुरी है।।
गिर पड़ी गर बूंद तो कीचड़ लिपट जाती
हर कदम का देखकर कर उठना जरुरी है।।
मान लो हो ही गई बिन बात की बातें
हर सुबह हर शाम का सहना जरुरी है।।
उठ रही हैं आँधियाँ इस बागीचे में
हाल इस तूफान से बचना जरुरी है।।
पूछ रे गौतम तनिक अपने मिजाज से
पर पड़ावों पर कहाँ रुकना जरुरी है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी