कविता : एक कहानी हर साधारण इन्सान की
अक्सर हमारे जीवन की भागदौड़ में रिश्ते बहुत पीछे छूट जाने है। आज ऐसी ही एक कहानी नवभारत टाइम्स के माध्यम से आप तक पहुँचाने का अवसर प्राप्त हुआ है।
कहानी है एक ऐसे इन्सान की जो अपने परिवार को पालने के लिये रात दिन कार्य करता रहता है उसे अपने लिये और परिवार के लिये बिलकुल समय नहीं मिलता और जब बुढा हो जाता है तो उसके बच्चे भी अपनी अपनी जिविका के साधनो को जुटाने में लग जाते है। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वो अपने बूढे बाप के पास बैठकर बात करे।उस बूढे को कहीं से एक पेन मिल जाता है और वो एक कागज के टुकड़े पर अपनी पुरानी यादों को लिखता है और उन्हे पढकर कभी हसता और रोता है।
लिखते.लिखते लिखा गया, एक कहानी का पन्ना।
अब तो मैं बूढ़ा हूँ पर, मेरी जवानी का पन्ना।।
आज नहीं जब सुनते है, मैं चुपके.चुपके रोता हूँ।
मैंने भी तो नहीं सुनी थी, माँ बाप की हर बात पुरानी का पन्ना।।
लिखते.लिखते लिखा गया, एक कहानी का पन्ना।
अब तो मैं बूढ़ा हूँ पर, मेरी जवानी का पन्ना।।
पूजा की थी मंदिरए मस्जिद, सेवा की गुरूद्वारे मे।
उनको मैंने नहीं था पूछा, बैठे रहे जो मेरे घर द्वारे मे।।
लाखो का था दान किया, पर नहीं समय पर रोटी दी।
जिसने जीवन भर त्याग किया, खुशी मुझे हर छोटी.छोटी दी।
अब कैसे अपनी गलती मानूं, जब नहीं वो मेरे पास है।
पल पल अब मैं याद करूँ, उनकी हर बात पुरानी का पन्ना।
अब तो मैं बुढा हूँ, मेरी जवानी का पन्ना।
लिखते लिखते लिखा गया, एक कहानी का पन्ना।
— सौरभ दीक्षित पिडिट्स