बालकविता : गाड़ी
छुक-छुक गाड़ी चलती जाती
कू-कू की आवाज लगाती
पटरी ऊपर दौड़ रही है
गाँव बस्ती जोड़ रही है
बोली मुझसे मेरी नानी
पहले होगी टिकट कटानी
हमने अपनी टिकट कटाई
दी पटरी पर रेल दिखाई
बैठ गए सब गाड़ी आई
हमने देखे पर्वत खाई
हमको कितनी सैर कराती
गाड़ी सबका भार उठाती
रेल पहुँचने वाली दिल्ली
छत के ऊपर मोटी बिल्ली
रेल पटरियाँ तिरछी आड़ी
दौड़ रही है कैसे गाड़ी
— सुनीता काम्बोज