जिंदगी
बहुत अकेली है जिंदगी ,
जरा गले लगाओ न ।
टूट रही है शब्दों की माला ,
धागा प्रेम का लगाओ न ।
मायूस है देखो वो अंधेरा भी ,
दीप प्रीत के जलाओ न ।
पतंग दूर कहीं उड़ रही ,
डोर जरा बढ़ाओ न ।
महफूज क्यों नहीं आज भी
बेटियों को जरा उन्हें सजाओ न ।
हार न जाये कहीं जीती हुई बाजी
जिंदगी को यूं सताओ न ।
मेहंदी लगी है कोमल हाथों में ,
सुर प्यार का सजाओ न ।
बियाबान है आज भी घर मेरा ,
हंसी के ठहाके लगाओ न ।
एक बार तो आओ मेरे खयालों में ,
जिंदगी को हक़ीक़त बनाओ न ।
पथरा न जाएं कहीं आंखियां मेरी ,
आंसुओं को यूं व्यर्थ बहाओ न ।