पद्य साहित्य

जिंदगी

बहुत अकेली है जिंदगी ,
जरा गले लगाओ न ।
टूट रही है शब्दों की माला ,
धागा प्रेम का लगाओ न ।
मायूस है देखो वो अंधेरा भी ,
दीप प्रीत के जलाओ न ।
पतंग दूर कहीं उड़ रही ,
डोर जरा बढ़ाओ न ।
महफूज क्यों नहीं आज भी
बेटियों को जरा उन्हें सजाओ न ।
हार न जाये कहीं जीती हुई बाजी
जिंदगी को यूं सताओ न ।
मेहंदी लगी है कोमल हाथों में ,
सुर प्यार का सजाओ न ।
बियाबान है आज भी घर मेरा ,
हंसी के ठहाके लगाओ न ।
एक बार तो आओ मेरे खयालों में ,
जिंदगी को हक़ीक़त बनाओ न ।
पथरा न जाएं कहीं आंखियां मेरी ,
आंसुओं को यूं व्यर्थ बहाओ न ।

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017