कविता

कविता : औंरत को तबायफ बनाता है कौन ?

उन रंगीन महफिँलो की , नुमाइश  बनके रह गई औरत  ।
मिलती आज ,    हर गली नुक्कड़ चौराहेँ पे  तबायफ  ।।

मै ! पूछती हुँ , आखिर औंरत को तबायफ बनाता है कौन ?
उन बदनाम गलियों .. बाजारो तक इन्हें ले जाता  है कौन ?

जिस्म फरोशी के,  ये धंधे आखिर करवाता कौन ?
इन मर्दो के सिवा,  किमत इनकी लगाता है कौन ?

ऐयाश मर्द ,दूनियाँ  मे सारे, है मगर बदनाम तबायफ ।
इन बदजात मर्दो को , आखिर ये आइना दिखलाएगा कौन  ?

बदँ कराने वाले ही, गर चलाएगेँ  बाजार ऐ कारोबार  …
मै ! पूछती हुँ ..आखिर जिस्मे बाजार बंद कराऐगा  कौन  ??

रीना सिंह गहलौत 'रचना'

कवयित्री नई दिल्ली