मोहब्बत को तेरी मैंने यूँ सजाकर रखा,
आँखों में तेरा ही चेहरा बसाकर रखा।
तकदीर का दोष बताती रही ता-उम्र,
तेरी बेवफाई का राज छिपाकर रखा।
दर्द ये दिल का दिल में ही दबाए रखा,
तेरे लिए दिल को मैंने समझाए रखा।
घूँघट की आड़ ले पौंछ लिये आँसू मैंने,
नकाब खुशी का चेहरे पर चढ़ाए रखा।
यादों को तेरी जीने का सहारा समझा,
तुमको लहरें खुद को किनारा समझा।
दूसरों की खुशी के लिए टूट जाता है,
खुद को मैंने वो ही टूटता तारा समझा।
बहुत टूट गई थी पर खुद को संभाला मैंने,
दर्द और मोहब्बत को एक साथ पाला मैंने।
जानता है वो खुदा भी मेरी वफ़ा की हद को,
तुम्हें कभी नहीं अपने दिल से निकाला मैंने।
सुलक्षणा से मैंने ये अफसाना लिखवाया,
बता दिया हर राज उसे, कुछ ना छिपाया।
हैरान रह गयी एक पल को सुनकर वो भी,
सजदे में मोहब्बत के सिर उसने झुकाया।
— डॉ सुलक्षणा अहलावत