कुण्डली/छंद

चामर छंद, तोणक, शक्वरी छंद…..

 

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कृष्ण को सदैव राधिका रही पुकारती।
तृष्ण को सुने न कृष्ण राह थी बुहारती।
पीर है बढ़ी चली जिया हुआ अधीर है।
मोह बाँसुरी रही दिखा न नैन नीर है।
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पूर्व खोह फोड़ झांकती अनंत रश्मियाँ।
गूँजने लगे दिगंत नाद ओम घण्टियाँ ।
आलसी बनो न शारदे सुता अभी सुनो।
लेखनी उठाय काव्य छंद को सभी गुनो।
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भोर है ढली अपूर्ण सी असीम चेतना।
सांझ है करीब दीप सी जले न वेदना।
पंथ को रही निहार शीघ्र लौट रांझना।
साँस ये न टूट जाय दर्द तीव्र साजना।

©®………..अनहद गुंजन गीतिका………

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*