सार्वजनिक रूप से केरल में गाय काटकर पकाने की घटना पर एक रचना
गाय हमारी माता है ये, बच्चा बच्चा गाता है।
आज वहीं उस मातृभूमि पर, माँ को काटा जाता है।
जिसका दूध दही पीकर के, शक्तिमान कहलाता है
भूल गया क्या आज समर्पण, बल अपना दिखलाता है।
देव तुल्य उस गौ माता की , गर्दन छुरी चलाता है।
राम-कृष्ण की पुण्य भूमि पर, क्यों नाहक इतराता है।
गौ वध करके तू जीवन भर, पाप भला क्यों ढोता है।
गौ माता का शाप कर्ण से ,पूछो कैसा होता है।
गौ हत्यारों डूब मरो तुम, चुल्लू भर उस पानी मे।
दिखने लगे रक्त के धब्बे, मां की चूनर धानी में।
लगता मरी संवेदनाएं, मरा आँख का है पानी।
मूक जीव की हत्या करके, झुठला दी वेदों वानी।
…….. *अनहद गुंजन गीतिका