कविता

सार्वजनिक रूप से केरल में गाय काटकर पकाने की घटना पर एक रचना

गाय हमारी माता है ये, बच्चा बच्चा गाता है।
आज वहीं उस मातृभूमि पर, माँ को काटा जाता है।

जिसका दूध दही पीकर के, शक्तिमान कहलाता है
भूल गया क्या आज समर्पण, बल अपना दिखलाता है।

देव तुल्य उस गौ माता की , गर्दन छुरी चलाता है।
राम-कृष्ण की पुण्य भूमि पर, क्यों नाहक इतराता है।

गौ वध करके तू जीवन भर, पाप भला क्यों ढोता है।
गौ माता का शाप कर्ण से ,पूछो कैसा होता है।

गौ हत्यारों डूब मरो तुम, चुल्लू भर उस पानी मे।
दिखने लगे रक्त के धब्बे, मां की चूनर धानी में।

लगता मरी संवेदनाएं, मरा आँख का है पानी।
मूक जीव की हत्या करके, झुठला दी वेदों वानी।

…….. *अनहद गुंजन गीतिका

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*