निर्मल मन
टैक्सी से उतर कर कुछ देर आदित्य बाबू असमंजस की स्थिति में खड़े रहे। फिर मन को पक्का कर उन्होंने डोरबेल बजाई। दरवाज़ा खुला तो सामने जीतू खड़ा था। अचानक उन्हें सामने देख कर वह भी अचंभित था। तीस साल के बाद दोनों भाई एक दूसरे को देख रहे थे। ज़मीन के एक टुकड़े ने दिलों में दरार डाल दी थी।
छियत्तर वर्ष पूरे कर चुके आदित्य बाबू इस पड़ाव में कोई भी भार रखना नहीं चाहते थे। अतः अहम त्याग कर यहाँ आए थे।
बड़े भाई के इस प्रयास को जीतू ने भी बेकार नहीं जाने दिया। बढ़ कर उनके पैर छुए और गले लग गया। भीतर जाने से पहले आसुओं ने दोनों के मन निर्मल कर दिए।