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लेख

प्रसन्न रहना कुछ खास कठिन कार्य नहीं है बस हमने स्वयं ही उसे कठिन बना रखा है। आनंद हमारा मूल स्वभाव है बस हमने उसे विस्मृत कर दिया है। ये दुख, चिंता सब हमने ऊपर से ओढ़ रखा है। थोड़ी सी दूसरों से दृष्टि हटा कर यदि हम अपनी ओर करेंगे तो पाएँगे कि दुख का, अप्रसन्नता का, चिंता का कोई कारण ही नहीं है। हमारा अस्तित्व मात्र ही आनंद का कारण भी है और आनंद का प्रमाण भी। हमारा होना परमात्मा के आनंदित होने का ही प्रतिफल है। इस विराट सृष्टि में हर जीव आनंदमग्न है सिवाय मनुष्य के और मनुष्य इस चराचर जगत की सर्वश्रेष्ठ कृति होते हुए भी दुखी रहता है। क्या है इसका कारण?
इसके कई कारणों में से दो महत्वपूर्ण कारण हैं एक तो दूसरों से अपनी तुलना एवं दूसरा दूसरों से अपेक्षा। तुलना करना बहुत अच्छा गुण है यदि हम अपने आज की तुलना अपने ही बीते हुए कल से करते हैं। परंतु बहुधा हम ऐसा करने की बजाय दूसरों से अपनी तुलना करने लगते हैं और यहीं से दुख शुरू होता है। जब भी हम किसी अन्य को अपने से अधिक धनवान या अधिक ज्ञानी या अधिक सुंदर या अधिक शक्तिशाली देखते हैं तो एक हीन भावना का शिकार होने लगते हैं। हम कभी अपने परिवेश को दोष देते हैं, कभी परिस्थितियों को, कभी परिवार को। परंतु हम ये भूल जाते हैं कि इस सृष्टि में कुछ भी अकारण नहीं है एवं कुछ भी महत्वहीन नहीं है। किसी महल का गुंबद का जितना महत्व है उतना ही महत्व नींव में लगी ईंटों का है। गुंबद का अस्तित्व ही उन ईंटों पर टिका है। किसी पुष्प के सौंदर्य का बखान करने से उसकी जड़ों का महत्व कम नहीं हो जाता। वो पुष्प अपने सौंदर्य के लिए उस जड़ का ही आभारी है। आज कोई व्यक्ति जिस स्थान पर है वहां तक पहुंचने के लिए उसका परिश्रम, योजना, भाग्य इत्यादि कई कारक उत्तरदायी हैं। हम उसके साथ अपनी तुलना करके समय बर्बाद करने की जगह अपने आप से ही यदि अपनी तुलना करें तो हमें अपनी कमजोरियां एवं गल्तियां दिखाई पड़ने लगेंगी और एक बार वो हमें दिखाई दे गईं तो उन्हें दूर करने में हमें अधिक समय नहीं लगेगा। इससे हमारा आने वाला कल निश्चित रूप से प्रसन्नता से भरा रहेगा।
दूसरा महत्वपूर्ण कारण है दूसरों से अपेक्षा। हम यदि किसी के प्रति भी जाने-अनजाने में कुछ अच्छा काम कर बैठते हैं तो बदले में उससे कुछ अपेक्षा रखने लगते हैं एवं जब वो अपेक्षा किन्हीं कारणों से पूर्ण नहीं होती तो हमें बहुत दुख होता है। हम किसी के लिए जो भी करते हैं वो अपने स्वभावानुसार करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का अभिगम, उसकी परिस्थिति भिन्न होती है। कभी-कभी कोई व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के वशीभूत होकर हमें हमारी अच्छाई का प्रतिफल नहीं दे पाता तो किसी-किसी व्यक्ति का अभिगम ही नकारात्मक होता है। जैसे बिच्छू का उदाहरण ही ले लीजिए। एक बिच्छू पानी में गिर कर यदि तड़प रहा हो और उसे कोई अपनी हथेली में लेकर पानी से बाहर निकालना चाहे तो वो बाहर आते ही उसके हाथ पर डंक मार देता है। इसमें बिच्छू की कोई गलती नहीं है, उसका स्वभाव ही डंक मारना है। वो अपने सहज स्वभाव का कार्य ही कर रहा है। उससे ये आशा रखना ही व्यर्थ है कि वो उसको बचाने के लिए आपको धन्यवाद दे। इसीलिए ज्ञानी पुरूषों ने कहा है कि नेकी कर दरिया में डाल। किसी के प्रति अच्छाई करके जो आपके हृदय को संतोष मिला, जो आपको प्रसन्नता हुई वही आपकी अच्छाई का प्रतिफल है। बहुधा हमें अपेक्षा के बदले उपेक्षा ही मिलती है। इसलिए किसी से कोई अपेक्षा न रखें। अपेक्षा हमेशा अपने आप से ही रखें। ये दो बातें यदि हम अपना लेंगे तो जीवन में अप्रसन्नता, उदासी काफी मात्रा में कम हो जाएगी एवं हम प्रसन्नता से अपना जीवन व्यतीत कर सकेंगे।

मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]