कविता

विस्मृत गांव

कहाँ खो गया वो स्वप्न सरीखा ,
सुंदर ,सलोना गांव अनोखा ।
भ्रातृत्व का खुलता था जहां ,
स्नेह ,अपनत्व पूर्ण झरोखा ।

चाचा ,काका ,बुआ ,काकी ,
प्रेम रस संचित रिश्तों की झांकी ।
सदा बहती थी मधुर बयार ,
सौंधी मिट्टी की  सुगंध थी बाकी ।

वो खुली खुली सुबह का जगना ,
पंछी कलरव का मधुर  चहकना ।
चौपाल पे बतियाते वृद्धों का झुरमुट ,
गौ दुग्ध ,माखन खुशबू का महकना ।

न कोई जल्दी न आपा धापी ,
चहुँ ओर मनोरम शांत मस्ती ,
वो  चारपाई पर सुख की नींद ,
हुए विस्मृत अब ग्राम के लोकगीत ।

अब शहर के दड़बे नुमा घर में ,
दौड़ते जीवन के कोलाहल में ।
अनजान अकेले जीवन के तन्तु ,
ढूंढते वो  गीत, गंधाते रिश्तों में ।

 डॉ संगीता गांधी

डॉ. संगीता गाँधी

शिक्षिका व लेखिका । प्रयास ,लोकजंग ,वर्तमान अंकुर ,समाज्ञा ,ट्रू टाइम्स ,झांब ,वुमेन एक्सप्रेस ,अनुभव आदि पत्र पत्रिकाओं व हिंदी निकुंज ,प्रतिलिपि, साहित्य पिडिया ,कथानकन , लिटरेचर पॉइंट ,स्टोरी मिरर आदि वेबसाइट पर रचनाएँ प्रकाशित । Wz 76 फर्स्ट फ्लोर ,लेन 4 ,शिव नगर ,नई दिल्ली 58 ईमेल [email protected]