ग़ज़ल
तुझे दिल में लाकर सताना बहुत है।
तिरे प्यार को आजमाना बहुत है।
ग़मे दिल हमें अब छुपाना बहुत है।
फरेबी हुआ ये ज़माना बहुत है।
पता है मुझे बेवफाई करेगा।
मगर दिल उसी से लगाना बहुत है
मुझे चाय पर तुम बुलाओ तो जाने
हुआ आज मौसम सुहाना बहुत है।
मुझे मिल गया है तेरा साथ यूँ तो.
मगर ज़िन्दगी को तपाना बहुत है
— शोभित तिवारी “शोभित”